लेखक की कलम से

लापता है बसंत …

(कविता)

 

 

बसंत आया तो है

डाली पर फूल

मुस्काया तो है

वीरान पेड़ पर

हरी कोंपलें

फूटी तो हैं

कोयल ने बसंती गीत

गया तो है

सरसों ने पीला खेत

महकाया तो है

बसंती चुनार

पगड़ी का रंग

लहराया तो है

मगर

लापता है

स्नेह के फूलों का बसंत

नहीं फूटती

प्यार की कोई लता

नहीं आता

अपनेपन का बौर

जाने क्यों ?

बसंत आकर भी

नहीं आता

लापता है बसंत

मेरे मन का बसंत

तेरे मन का बसंत

लापता है बसंत …

 

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़    

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