लेखक की कलम से

तुम खूबसूरत हो …

 

जिन आंखों से ममता बरसे,

एक छुअन से तन-मन हरसे।

 

हृदय से प्रेम का गागर छलके,

छांव करे तुम्हारी झुकी पलकें।

 

कभी चंचल हो हिरनी सी,

गहन, गंभीर भी अवनी सी।

 

तुम ममता की मूरत हो,

हां तुम बहुत खूबसूरत हो..

 

रिश्ते गुलदस्तों सी सजाती,

तुम ही घर को स्वर्ग बनाती।

 

होंठों पर जब मधुर मुस्कान मिले,

मन आंगन में हजारों फूल खिले।

 

माता हो, तुम भगिनी भी,

प्रेमिका हो और पत्नी भी।

 

तुम धरती हो, प्रकृति भी हो

हां तुम बहुत खूबसूरत हो..

 

©वर्षा महानन्दा, बरगढ़, ओडिशा           

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