शायरों के कलाम जो ‘बेगम’ की आवाज़ पाकर अमर हो गए …
बेग़म अख़्तर ने जहां ग़ालिब, द़ाग और मोमिन को गाया, वहीं हमअसर शायरों को भी गाया। बल्कि कुछ श़ायर तो सिर्फ बेग़म अख़्तर को ही ख्याल में रखकर गज़ल लिखते थे और सिर्फ बेग़म के लिए ही लिखते थे। क्योंकि जिन शायरों को भी बेग़म ने गाया, वो बहुत मशहूर हुए। उस ज़माने में एक तरह से शायरों में होड़ लगी रहती थी कि कैसे बेग़म अख़्तर उनकी गज़ल गाएं। उनके गायन में एक ख़ास सोज़ है, टीस है, क्लासिकपना है। उन्होंने ग़ज़ल के वही शेर चुने जिनमें उदासी, टूटन, बेचैनी और द्वंद है। बड़े – बड़े शायरों के कलाम उनकी आवाज़ पाकर अमर हो गए।
कलकत्ता में दुर्गा पूजा के अवसर पर बेगम अख्तर ने बहज़ाद लखनवी की लिखी —
” दीवाना बनाना है, तो दीवाना बना दे,
वरना कहीं तकदीर तमाशा न
बना दे।
ऐ देखने वाले, मुझे हंस-हंस के न देखो,
तुमको भी मोहब्बत कहीं मुझसा न बना दे। ”
अपनी पहली ग़ज़ल गाई। जिसने पहले बंगाल में, फिर पूरे देश में तहलका मचा दिया। इस ग़ज़ल के दीवाने पंडित जसराज भी थे। कहते हैं कि 1944- 45 में इश्तियाक अहमद अब्बासी शादी के बाद जब बेगम ने गाना बंद कर दिया तो बहज़ाद लखनवी ने भी लिखना छोड़ दिया था।
जिगर मुरादाबादी की लिखी गज़ल —
‘तबीयत इन दिनों बेगना-ए-गम होती जाती है,
मिरे हिस्से की गोया हर खुशी कम होती जाती है.’
बेग़म ने बड़ी खूबसूरती से इसे काफी ठाठ की राग सिंधूरा में सजाया था।
सुदर्शन फ़ाकिर की ये गज़ल, जो उन्होंने बेगम के लिए ही लिखी–
‘कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया,
और कुछ तिल्ख-ए-हायात ने दिल तोड़ दिया।
दिल तो रोता रहा और आंख से आंसू न बहे,
इश्क की ऐसी रिवायत ने दिल तोड़ दिया। ’
हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब,
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया। ’
और
‘आपको प्यार है मुझसे कि नहीं है मुझसे,
जाने क्यों ऐसे सवालात ने दिल तोड़ दिया। ’
बेगम अख़्तर ने अपने क्लासिक अंदाज़ में इसे राग भूप-कल्याण में इसे गाया।
सुदर्शन फाकिर की ही लिखी ये गजल जिसे बेग़म ने राग जोगिया में कम्पोज़ किया —
“अपनों के सितम हमसे बताए नहीं जाते,
ये हादसे वो हैं जो सुनाए नहीं जाते।
कुछ कम ही ताल्लुक है मोहब्बत का जुनूं से,
दीवाने तो होते हैं बनाए नहीं जाते।
इक उम्र की कोशिश से भुला दी है तेरी याद,
लेकिन अभी तक याद के साये नहीं जाते। ”
कहते हैं कि इस गज़ल का मक्ता शमीम जयपुरी ने बेग़म अख़्तर के लिए ही लिखा और बेग़म ने इस गज़ल को राग शुद्ध कल्याण में गाकर मशहूर कर दिया —
“काबे से बुतकदे से कभी बज़्म-ए-जाम से,
आवाज दे रहा हूं तुझे हर मकाम से
दिल में फरेब, लब पे तब्बसुम, नज़र में प्यार,
लुट गए शमीम बड़े ऐहतमाम से। ”
इस गज़ल को सुनकर शमीम जयपुरी कह उठे कि “गज़ल गायकी में बेग़म अख़्तर की कोई मिसाल नहीं। रूह से उठती हुई एक आवाज है वो, जो रूह को छूकर गुज़र जाती है। ”
शमीम की ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरती से राग देश में बेग़म ने सजाकर गाया और शमीम और भी मशहूर हो गए। , वो कुछ इस तरह है…
शमीम की, वो कुछ इस तरह है…
‘सुना है लूट लिया है किसी को रहबर ने,
ये वाकिआ तो मिरी दास्तां से मिलता है।
दर-ए-हबीब भी है, बुत-कदा भी, काबा भी,
ये देखना है, सकूं अब कहां से मिलता है। ”
लेकिन जिस शायर से बेग़म अख्तर ने बेपनाह प्यार किया, वो थे जिगर मुरादाबादी। ज़िगर को सही माने में हर दिल अजीज़ बनाने में बेग़म का बहुत बड़ा हाथ रहा–
“यूं दिल के तड़पने का कुछ तो है शबब आखिर,
या दर्द ने करवट ली या तुमने इधर देखा। ”
“दुनियां के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद,
अब मुझको नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद। ”
या
‘कोई ये कह दे गुलशन गुलशन,
लाख बलाएं, एक नशेमन।
कातिल रहबर कातिल रहज़न,
दिल सा दोस्त न दिल सा दुश्मन।
आज न जाने राज ये क्या है,
हिज्र की रात और इतनी रौशन। ”
फिराक गोरखपुरी के साथ बेगम अख्तर की दोस्ती भी एक अलहदा कहानी है —
“शाम-ए-गम कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो,
बेखुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो।
निकहत-ए-जुल्फ-ए-परेशां दास्तां-ए-शाम-ए-गम,
सुबह होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो। ”
ये नज़्म फिराक़ ने बेग़म साहिबा को तोहफे में दी और बेग़म से इसरार किया कि वो इसी वक्त इसे गाकर सुनाएं। बेग़म अख़्तर ने बस उसी वक्त इस गज़ल को राग शिवरंजनी मे तरतीब किया और इतनी खूबसूरती से गाया कि फिराक़ की आंखों से आंसू बह निकले।
लेकिन शायरों में सबसे करीब अगर उनसे कोई था, तो वो थे कैफ़ी आज़मी। बेग़म के बारे में, ‘कैफ़ी आज़मी का कहना था कि ‘गज़ल सिर्फ सुनने को नहीं, बल्कि देखने को भी मिलती है। ’
कैफी आज़मी की गज़ल जिसे बेगम ने ‘मिश्र काफी’ में गाया जिसके लिए कैफी बहुत शुक्रगुज़ार थे —
“सुना कर मेरी जां इनसे उनसे अफसाने,
सब अजनबी हैं यहां कौन किसको पहचाने।
मिरे जुनून-ए-परस्तिश से तंग आ गए लोग,
सुना है बंद किए जा रहे हैं बुतखाने।
बहार आए तो मेरा सलाम कह देना,
मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने।
हुआ है हुक्म कि कैफी को संगसार करो,
मसीह बैठे है छुप के कहां खुदा जानें। ”
बेग़म की जो दो सबसे मशहूर गज़लें हैं, वो शकील की लिखी ये दोनों गजलें हैं–
“मेरे हम-नफस मेरे हम-नवा,
मुझे दोस्त बना के दगा न दे।
मैं हूं दर्द-ए-इश्क से जां-ब-लब,
मुझे जिंदगी की दुआ न दे। ”
और
“ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया,
जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया।
यूं तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी,
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया। ”
शकील की इन ग़ज़लों का कोई जवाब न था। ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे’ तो बेग़म का सिग्नेचर ट्यून हो गई। अगर ‘दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे’ से उनकी पहचान हुई, तो ‘ऐ मोहब्बत’ ने उन्हें उस मकाम पर लाकर खड़ा किया, जहां तक आज भी कोई नहीं पहुंच पाया। इस गज़ल ने शकील बदांयूनी को बहुत ऊंचे मुकाम तक पहुंचा दिया, और उनको भी सिलेब्रिटी बना दिया। बेगम की एक औरअपने हमउम्र शायर हफीज़ होशियारपुरी की एक खूबसूरत गज़ल है…
“मोहब्बत करने वाले कम न होंगे,
तेरी महफिल में लेकिन हम न होंगे। ”
बेग़म अख्तर ने कभी कहा था कि मेरी पहचान हुई है स्टेज पर और चाहती हूं कि दम भी वहीं निकले। अहमदाबाद में अपनी ज़िंदगी का उन्होंने आखिरी पब्लिक कॉन्सर्ट
किया, जहां उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उन्होंने राग भैरवी में ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया, जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया’ से ही अंत किया। (30 अक्तूबर 1974, अहमदाबाद)
उन्हें कला के क्षेत्र में भारत सरकार पहले पद्म श्री तथा सन 1975में मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें “मल्लिका-ए-ग़ज़ल” के ख़िताब से नवाज़ा गया था।
©डॉ. विभा सिंह, दिल्ली