लेखक की कलम से

योगीजी की नजर में अब कैसे हैं ”माननीय” ?

यूपी विधान परिषद में बहस (25 फरवरी 2021) के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उद्गार थे कि सम्मानजनक शब्द ”नेता” अब अपमानजनक लगने लगा है। यूं हर हास्य कवि का आम विषय भी ”नेता” हो गया है। अत: नागरिक को आत्ममंथन करना होगा कि आखिर अपने अनुगमन करने हेतु प्रेरित करने वाला व्यक्ति अब व्यंग्य की वजह क्यों हो गया है?” हिन्दी पट्टी में तो नेता का पर्याय है सर्वदुर्गुण संपन्न व्यक्ति। नेता शब्द पर भाषा कोश में खोज करने के बाद अर्थ तो कई मिले। अर्थात किसी क्षेत्र या विषय में किसी का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति। वह जो राजनीति के क्षेत्र में अगुवाई करे। दल विशेष को किसी ओर ले जाने वाला व्यक्ति हो। नायक, अगुआ, सरदार, लोगों का मार्गदर्शन करने वाला इत्यादि।

संस्कृत में नेतृ पुलिंग संज्ञा है। नेत्री स्त्रीलिंग। मायने हैं नायक, सरदार, प्रभु, स्वामी, मालिक, काम को चलाने वाला, निर्वाहक, प्रवर्तक इत्यादि।

कैसा व्यवहारिक पतन इसी यूपी विधानसभा में हुआ था गत सदी के पांचवें दशक (1950—60) के आस—पास। तब एक मुस्लिम विधायक थे मियां लाइक अली। दूसरे हिन्दू विधायक थे नेकराम शर्मा। यूपी के समाचारपत्रों में सुर्खी रही कि लायक अली एक युवती को लेकर फरार हैं। दूसरा समाचार था कि पं.नेकराम शर्मा ने अपने दारुलसफा विधायक आवास पर एक युवा मास्टरनी को तालाबन्द कर रखा है। सदन में यह सूचना फैलते ही विपक्ष के नेता राजनारायण जी दलबल सहित उस महिला की आबरु बचाने विधानसभा से वहां पहुंच गये और बहुत हंगामा काटा।

तभी रिपोर्टरों को भी इन दोनों घटनाओं को चाट जैसा मसालेदार बनाकर लिखने में नैसर्गिक लुत्फ मिला था। दैनिकों का प्रसार बढ़ गया था। हालांकि पत्रकारी संहिता के मुताबिक यह बड़ी छिछली और ओछी हरकत थी। ऊपर से तुर्रा यह था कि लखनऊवासियों ने निर्णय किया कि कोई भी अपनी संतान का नाम ”लायक” अथवा ”नेक” कदापि नहीं रखेंगे।

आज योगी आदित्यनाथजी की टिप्पणी पर विचार तो हर राजनेता को करना चाहिये। गुलाम भारत में ”नेता” की अवधारणा थी कि खद्दरधारी हो अर्थात तन को चुभने वाला खुरदरा परिधान पहने। कष्ट का प्रतीक और श्रम का पर्याय हो। साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष की वर्दी थी खादी। तब हर खादीधारी गुलामी युग में राष्ट्रवाद का योद्धा बन गया था।

क्या विडम्बना है कि आजाद भारत में सफेद खादी ही भ्रष्टाचार की कालिमा से दमकने लगी। पटना में तो कुर्ताधारी विधायक के बारे में कहावत थी कि तीनों जेब दिखाकर वह कहता है ”एमे ले”। ”नेताजी” ही उसके लिये खास संबोधन रह गया है। गनीमत है कि सुभाषचन्द्र बोस अब नहीं रहे। वर्ना क्या गुजरती उनके दिल पर।

 

part 1 continue…….

 

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

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