लेखक की कलम से

भटकना …

भटकना ठीक नहीं

चाहे मन का,

चाहे मार्ग का ,

चाहे जीवन का,

फिर भी

लोग भटक जाते

मन का भटकना अनियंत्रित,

असीमित हो अनंत तक भटक जाता

मार्ग का भटकना

क्षणिक, मत भ्रम से होता

इसमें कुछ सुधार की गुंजाइश होती..

किंतु

जीवन का भटकना

घातक होता

व्यक्ति बनता या स्वाहा कर देता

अपने जन्म तक को भी….

इसके पूर्व तनिक चिंतन की आवश्यकता

नहीं तो

“ब्लैक होल” में उलझी

जिंदगी बन कर रह जाती…

जीते तो है

पर

वर्तमान से कटकर !!

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                            

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