लेखक की कलम से

प्रथम प्रेम …

 

प्रथम प्रेम की प्रथम व्याकुलता

कर देती मन आकुल

प्रथम ध्वनि, प्रथम दृश्य

प्रथम मिलन, प्रथम स्पर्श

जीवन को मिलती नई दिशा

नई उमंग, नई तरंग

नए सपने, नए अनुभव

लगता सब-कुछ संपूर्ण

सिमट उन अधरों में दुनिया

लौट आया स्वप्निल बचपन

जीवन में भर जाते रंग

सपनों में लग जाते पंख

सब कुछ अपना-सा लगता

दुःख से मानो सरोकार नहीं

ख़ुद मुस्कायें, ख़ूब खिलखिलाएं

समय रेल सा कटता जाए

सुबह शाम एक ही काम

ख़ुद को सँवारो, उनको निहारो

सोते-जगते, उठते-बैठते

खाते-पीते, हँसते-रोते

होठों पर बस एक ही नाम

यही प्रथम प्रेम का प्रथम परिणाम

 

 

    ©सोनम तोमर, लखनऊ, उत्तरप्रदेश     

परिचय :- शोधार्थी, हिंदी विभाग, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ।

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