लेखक की कलम से

मन ….

दिनभर मन मायावी कल्पना में तल्लीन रहता है

चैन नहीं आता रात में भी

अजीबोगरीब अतर्किक सपने गला घोंट देते हैं

 

बिन मिलावट सच  बोल दूँ तो

सर्वनाश हो जायेगा…

 

स्वकिया परकिया सब एक हो जाते हैं

गोलमाल है, सब गोलमाल

चुप… बिलकुल चुप !

 

ज़िंदा रहे शायरी मेरी

ज़िंदा रहे भ्रामक कल्पना

अमर रहे ताज़ी आशाएं

जब तक हूं, इस तरह अपने सपनों को सजाता रहूं

सपना बड़ा अपना है..

 

@मनीषा कर बागची

 

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