लेखक की कलम से
एक अच्छे शिक्षक …
सुन्दर सुर सजाने को साज बनाता हूँ ।
नौसिखिये परिंदों को बाज बनाता हूँ ।
चुपचाप सुनता हूँ शिकायतें सबकी,
तब दुनिया बदलने की आवाज बनाता हूँ।
समंदर तो परखता है हौंसले कश्तियों के,
और मैं डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूँ।
बनाए चाहे चांद पे कोई बुर्ज ए खलीफा,
अरे मैं तो कच्ची ईंटों से ही ताज बनाता हूँ।
“अच्छे शिक्षक से एक स्टूडेंट का निवेदन”
मुझे अल्हड़ता से गाने दो,
क्यों अपना साज बनाते हो?
मैं पिय का प्रेम पपीहा हूँ,
मुझको क्यों बाज़ बनाते हो?
कुदरत ने कंठ दिये मुझको,
अपने ही सुर में गाने को,
तुम मेरे गीत बदलकर क्यों
अपनी आवाज बनाते हो?
मैं ना मिट्टी का लौंधा हूँ
और ना ही कोई पत्थर हूँ,
मैं तो आज़ाद परिन्दा हूँ,
मुझको क्यों ताज़ बनाते हो?
©परीक्षित जायसवाल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़