लेखक की कलम से
गमजदा …
सर -जमीं से कमर को निहारा कहां है,
अभी उसने ख़ुद को “सँवारा” कहाँ है l
गमजदा है ये बज़्म-ए-सियाही आज,
बिना चाँद के रौनक – ए – बज़्म कहाँ है l
कुछ गीत लिखे हैं जो सुनाना है उन्हें,
बज़्म सज चुकी पर उन्हें खबर कहाँ है l
है बरसों से कब्ज़ा तो इस पर तुम्हारा,
ये दिल भी अब हमारा, हमारा कहाँ है l
मेरे अफसानों में तो बस तुम ही तुम हो,
कहीं पर भी “जिक्र -ए-शिवांश कहां है l
ख़ुदको हमने तन्हा किया इस वास्ते ही,
तुम्हें मेरा साथ होना भी गवारा कहाँ है l
राह -ए-जीस्त में भरोसा है तुझपे शिवांश
किसी को रहनुमा इख्तियार किया कहाँ है l
©शिवांश पाराशर, सागर, मप्र