लेखक की कलम से

डाकिया …

 

देखो डाकिया डाक लाया

खट्टे मीठे समाचार साथ लाया

 

गांव में बैठे पिता ने डाकिए को देख

पत्नी को था झठ से बुलाया

 

दूर देश से बच्चों की ख़बर

था डाकिया लाया

हां शायद यादों के पिटारे को साथ लाया।

 

शरहद पर सिपाही को डाकिया जब डाक देता है

भगवान का दूत का स्वरूप बन जाता है

 

आज के नौजवान भी इंतजार करते डाकिया के आने का

नौकरी से संबंधित समाचार पाने का

 

साइकिल की घंटी बजते ही

भागकर आते बच्चे भी

 

शायद मामा के घर से पैगाम हो आया

मम्मी के संग नाना ने हमें भी हो बुलाया

 

डाकिए ने जब तार पढ़कर सुनाया

आंखों में खुशियों से आंसू था भर आया

 

कई दिनों की ख्वाइश थी परदेश जाने की

आज देखो मुनिया का पासपोर्ट डाकिया है लाया

 

हां, देखो भाई शहर हो गांव

डाकिया सा न कोई देवदूत होता

जो अपनों की हर खबर हमें पहुंचाता।।

 

©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा                                  

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