लेखक की कलम से

धीरज मत खोना …

 

साथ न हो कोई फिर भी धीरज मत खोना

एतबार न करें कोई फिर भी धीरज मत खोना

न पोछे आंखों से आंसू फिर भी धीरज मत खोना

चाहे ज़माना हो एक तरफ और तुम अकेले

फिर भी धीरज मत खोना

हर कदम  संभल कर चलना है

हर हालात से मुकाबला करना है

जीवन की नैया को धीरज रख पार करना है

गीले शिकवे तो बस क्षण भंगुर है

मिल जुलकर रहना ही जीवन का दस्तूर है

प्यार,स्नेह के सरोवर में डूब कर

मानवता की रक्षा करना है

धीरज को अपना कवच बनाकर

पंछी सा चाहाचहाना है

शोर न हो, कड़वापन न हो

बस शांति से आगे रिश्ता निभाना है

हां, धीरज नहीं खोना है।

 

©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा

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