लेखक की कलम से

अनोखा श्रृंगार …

श्रृंगार नारी की आभा निखारता है।

नैनो की चमक, प्यार भरे दिल होने का इजहार करती है।

लबों पर कसक , हाथो का कोमल स्पर्श का बोध, हसीन

शाम का सौदर्य बढा देता है।

प्रकृति का श्रृंगार हरियाली से, नारी का श्रृंगार अंतर्मन उज्जवल होने से सौदर्य सम्पूर्ण होता है।

सोलह श्रृंगार होने से तन की सुंदरता बढती है।

मन मे प्रभु की भक्ति का श्रृंगार किया जाए तो मन की आभा का निखार मुख को भी तेज पूर्ण आभा से सच्चाई की छवि से बहुत ही अनोखा आवरण रूपी ईश्वर मय सौदर्य को दर्शाता है।

सीरत का श्रृंगार परोपकार हो ।

मन मे समर्पण का भाव , ज्ञान हो सर्वश्रेष्ठ ह्रदय मे

अच्छाई अनुकरण का भाव हो।

ईश्वर इन अंलकारो से यदि श्रृंगार हो तो सर्वत्र शान्ति का ही भाव हो।

कामना मेरी कुछ ऐसी है ।हर कोई अंतर्मन को दिव्य अंलकारो से सुशोभित कर ले ।

धरा मे चारो ओर आपसी मेल जोल का संचार हो।

आभा मंडल का सौदर्य सुविचारो से चमकने लगेगा।

काश! ऐसा मौन सा श्रृंगार हो।

 

©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा                         

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