लेखक की कलम से

मन उनका मजबूत है …

पीठ बहुत मज़बूत है,चढ़कर अमिया तोड़।
पिता हमारे कह रहे,इसका-उसका छोड़।

डाँट पिलाते ज़ोर से,आँख तरेरें लाल।
डर से छक्के छूटते,गले लगाते हाल।

तन उनका कमजोर है,ऊर्जा है भरमार।
मन उनका मजबूत है,सह लेते सब भार।

ख्वाहिश पूरी कर रहे,जागें रातों रात।
बच्चों की ख़ातिर जुड़े,हर दर उनके हाथ।

कथा,कहानी कह रहे,देते सब संज्ञान।
पाप-पुण्य को तोलना,जीवन बने सुजान।

उँगली पकड़े चल रहे,छूट न जाए साथ।
थककर जब मैं चूर था,नाज़ उठाए माथ।

मेरी सब नादानियाँ,कर देते हैं माफ।
आँसू मेरे पोंछते,कंटक करते साफ।

खेल खेलते संग में,घोड़ा बनते हाल।
जानबूझके हारते,सदा जिताते लाल।

पंछी की अठखेलियाँ,हमें दिखाते रोज।
दाना-पानी को फिरें,करते इत-उत खोज।

पेड़ लगाते चाव से,हिलमिल करते बात।
देते जीवन दान हैं,कभी न छोड़ें साथ।

गौ सेवा नित दिन करें,गुड़ रोटी का भोग।
गोबर के उपले बनें,करते सब उपयोग।

कसरत से सेहत रहे,दिनभर ऊर्जावान।
हरी सब्जी का सेवन,पानी पीते छान।

 

©डॉ. प्रीति प्रवीण खरे, भोपाल मध्य प्रदेश                   

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