लेखक की कलम से

बोलिए साहिब …

यहां जो आज फैली है बव़ा पर बोलिए साहिब बिकी है बंद बोतल में हवा पर बोलिए साहिब

 

जहां तय रोज़ होते हैं ग़रीबों के निवाले भी अमीरों की इसी प्यारी दया पर बोलिए साहिब

 

नमक जो देश का खाएं विदेशों की बजाते हैं कि इस नादान सी ज़ालिम ख़ता पर बोलिए साहिब

 

रहे जो मांगते हैं शूरवीरों से सबूतों को

उन्हीं की धूर्तता की इस अदा पर बोलिए साहिब

 

कोई चारा कोई पेट्रोल कोई प्याज़ खाता है

कि भारत की बुरी इस दुर्दशा पर बोलिए साहिब

 

कहां जाकर थमेगा हाल जो भारत का बन बैठा कि कुछ तो आज नेता की दग़ा पर बोलिए साहिब

 

©डॉ रश्मि दुबे, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश                      

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