लेखक की कलम से

गुप्त शत्रु या कठोर शिक्षक …

“कोई खिड़की खटखटाता है –

कोई दरवाजे की घंटी बजाता है ,

पर कोरोना चुपचाप –

भीतर घुसता चला आता है ।।

 

रुकता नहीं, सुनता नहीं ,ठहरता नहीं- और किसी को कुछ समझता नहीं

बस बेधड़क भीतर –

घुसता चला आता है ……….।।

 

न जात-पात से मतलब –

न ऊँच-नीच का ध्यान ,

न पैसे वालों से डरे –

न गरीब को छोड़े ।।

 

न सम्प्रदाय को कुछ समझे –

न किसी धरम का करता मान ,

बड़ा अधर्मी लगता है –

कहना किसी का नहीं सुनता है ।।

 

बस बे-धड़क भीतर –

घुसता चला आता है…….2

 

पर इस बृह्माण्ड में –

बगैर कारण तो कुछ भी होता नहीं ,

फिर कैरोना किस कारण से आ गया –

कोरोना क्या समझाने आ गया ??

और इस बार तो कई गुना ज्यादा शक्तिशाली बन कर आ गया ….।।

 

कोरोना” वसुधैव कुटुम्बकम “की –

याद दिलाने आ गया ,

कैरोना मानवता का मर्म –

मानव को समझाने आ गया ।।

 

कोरोना जीवन जीने के नये –

सलीके सिखाने आ गया ,

बहुत नीचे गिर चुका है इंसान –

वो उसे ऊपर उठाने आ गया….।।

 

कोरोना आज इंसानी दिमाग के फितूर-

सब युद्ध के हथियारों अणु और, परमाणु बमों को भी धता बताने आ गया –

मानो उसको एक सबक सिखाने आ गया ।।

 

इस कुदरत के आगे तू कुछ भी नहीं –

तरक्की का हर अंहकार वो मिटाने आ गया ,

इंसानी औकात की हदें बताने आ गया-

इंसान को इंसान होना समझाने आ गया ।।

 

कोरोना बता रहा है कि ये भू – गोल है –

प्रत्येक प्राणीमात्र का यहां बड़ा मोल है ,

सबको एक कतार में खड़ा करके –

कुदरत का नियम समझाने आ गया ।।

 

आज एक बार फिर और ज्यादा -दहशत में है दुनिया,

आज एक बार फिर –

सोचने को मजबूर हुई है दुनिया …।।

 

हर दिल दिमाग में दश्तक देकर-

सहयोग के मायने सिखाने आ गया ,

हर इंसान को अनुशासन के साथ जीवन जीना सिखाने आ गया ।।

 

अपनी- अपनी जिम्मेवारियों का-

कर्तव्यबोध कराने आ गया ,

बहुत करी सबने धक्का मुक्की

बहुत अनुशासन हीनता दिखा ली

अब सड़को पर चलना सीखों

मर्यादाओं में रहना सीखों

अपनी बारी आने तक –

धैर्य बना कर रखना सीखो ….।।

 

सड़को पर अब मत थूको  –

जहाँ तहाँ कचरा मत फेंको ,

सफाई से रहना सीखो ,

केवल उंगली मत उठाओ दूसरों पर-

अब खुद भी कुछ करना सीखो …..।।

 

वक्त बिताओ अपनों के साथ –

और सुकून से मनन करो ,

कहाँ हो गया गलत ये इंसान –

बैठ कर जरा चिंतन करो ।।

 

समझो खुद को –

प्रकृति को और परमशक्ति को ,

समझाओ खुद को इस कुदरत की –

निर्भीक असीम अभिव्यक्ति को…।।

 

बड़ी विषद परिस्थिति आई है –

सब मिलकर इसे हरा डालो ,

कर्तव्यों के हवन कुण्ड में –

अपने-अपने हिस्से की आहुती डालो।।

 

कोरोना बता रहा है कि –

ये भू- गोल है ,

प्रत्येक प्राणी मात्र का –

यहां बड़ा मोल है ।।

 

कोई खिड़की खटखटाता है –

कोई दरवाजे की घंटी बजाता है ,

पर कोरोना चुपचाप बस बे-धड़क – भीतर घुसता चला आता है ……।।”

 

©भावना सिंह “भावनार्जुन”, लखनऊ, यूपी    

परिचय: लखनऊ विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा, दो काव्य संग्रह, साझा काव्य संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित, राष्ट्रीय व स्थानीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं व लेख का प्रकाशन.

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