लेखक की कलम से
यूँ ऐसे न रूठा करो …
यूँ ऐसे न रूठा करो,
कुछ पल संग बैठा करो।
यूँ ..…………..
कुछ पल संग संग बाते करो,
चाहे गिले या शिकवे करो,
बस यूँ खामोश न रहा करो,
बस इश्क की बाते करो।
यूँ.………
कुछ..…….
यूँ.……..
देखो बारिशों का मौसम आया,
इश्क भी पैगाम लाया,
कुछ तो ये पैगाम सुनो,
आओ कुछ तो कहो और सुनो।।
यूँ……
कुछ….
यूँ…..
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी