लेखक की कलम से

एक अरसा हो गया ….

“एक अरसा हो गया है।”

इंतज़ार कर रहे हैं हमारा …..

वो चाय की प्याली और समंदर का किनारा

काफ़ी वक़्त हो चला है उन दोनों को दिए

एक अरसा हो गया चैन से दो बातें किये

 

चलो आज मिलके कुछ किस्से चुनते हैं

हमारे तुम सुनना तुम्हारे हम सुनते हैं

पता ही नहीं लगा कब बुझ गए ख्वाबों के वो दिये

एक अरसा हो गया चैन से दो बातें किये

 

याद है कैसे बिन बात खुश हो जाया करते थे

युहीं चहकते हुए सबकी खुशी बन जाया करते थे

अब तो गुज़रता ही नहीं दिन बिना अपने गमों को पिये

एक अरसा हो गया चैन से दो बातें किये

 

उछलती लहरों जैसी मुस्कान हुआ करती थी

हर दिन मानो एक नई किताब हुआ करती थी

अब लगता है जैसे न जाने कितने साल हमने एक ही पन्ने में जिये

एक अरसा हो गया चैन से दो बातें किये

 

भागती उस ट्रैन को टक्कर दिया करते थे

गिर जाते थे फिर भी हंस के उठा करते थे

गिर के उठ जाते हैं अब युहीं होठों को सीए

एक अरसा हो गया चैन से दो बातें किये

 

चलो, चाय ठंडी और लहरें हो गयीं हैं सख्त

रुकना भी कहाँ मंज़ूर करता है ये वक़्त

कह दो अगर कुछ लाये हो तुम भी हमसे कहने के लिए

एक अरसा हो गया चैन से दो बातें किये।

 

©अनन्या त्यागी, जोधपुर, राजस्थान        

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