लेखक की कलम से

मैं चोर नहीं हूं . . .

एक लघु कथा

एक गाँव में चोरों का बहुत आतंक था.. कोई ऐसा घर नहीं बचा था..जहाँ चोरी ना हुई हो.. सभी परेशान और बहुत दुखी थे। हालाँकि सबको पता था कि चोरों का एक गिरोह है…..और उस गिरोह पर इलाके के थानेदार साहब का हाथ है..। लेकिन लोग कब तक बर्दाश्त करते… सब ने आपस में एक मीटिंग की और थानेदार को आवेदन किया कि आप इन चोरों को पकड़िये और हमारा धन हमें वापस कराइये…।

थानेदार ने चोरी जैसे कुकर्म पर एक जोरदार भाषण दिया..और लोगों को विश्वास दिलाया कि 100 दिन के अंदर आप सभी का माल आपको मिल जाएगा..। लोगों ने थानेदार की बातों पर विश्वास किया और घर को चले..। लेकिन कुछ ही दिनों बाद गाँव के लोगों के पास सरकारी नोटिस आना शुरू हुआ कि “आपने माल चोरी की जो रिपोर्ट थाने में लिखाई है .. । उस माल को आपने कब कमाया…?  कहाँ कमाया…?  कैसे कमाया…?  कितना कमाया ..?  कितना खाया…?.   उस माल का कितना टैक्स दिया..?

अगर जवाब पूर्ण संतुष्टि वाला हुआ तो ठीक नहीं तो क्यों नहीं  आपको ही चोर समझा जाए ..और जेल भेजा जाए…। क्योंकि हमारी सरकार किसी भी कीमत पर बेईमानी को समर्थन नहीं करती.”” अब गाँव वालों की हालत खराब हो गई।

अब कोई नहीं पूछता की चोरों का क्या हुआ..?  चोरी हुए माल का क्या हुआ..?   चोर पकड़े गए कि नहीं..? अब सब ये साबित करने में न्यायालय के चक्कर लगा रहे हैं कि मैं चोर नहीं हूँ…. साहेब…. मैं चोर नहीं हूँ ।

©प्रो. सरोज मिश्र, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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