लेखक की कलम से
मन रे …
मन रे, तू काहे न धीर धरे,
प्रियतम जब संग ही तेरे,
काहे तू खोजे फिरे,
मन रे,तू काहे न धीर धरे,
प्रेम डगर कठिन मगर,
काहे न तू मुस्काता चले,
मन रे,तू काहे न धीर धरे,
प्रेम तेरा निर्मल ऐसा,
कान्हा संग संग चले,
मन रे,तू काहे न धीर धरे,
देख जरा हर कण में प्रियतम,
अब तो दरश कर ले,
मन रे,तू काहे न धीर धरे,
मैं को अब तज दे प्यारे,
तो श्याम तुझे मिले,
मन रे,तू काहे न धीर धरे।।
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी
परिचय: शिक्षिका, योगा ट्रेनर, लेखिका