लेखक की कलम से

आचरण …

कुछ जतन संग कीजिऐ,

पालन पोषण आज,

संतान से भी सीखिये,

प्रेरक बातें आज।

 

माना बहुत छोटे है,

काज बड़े है साथ,

प्रकृति संग वो रमे,

कुछ करिये प्रयास।

 

आचरण संग सिखाये,

जो गहरी हो बात,

सुंदर सा फिर निखारे,

कल के वो है साज।।

 

माता पिता के कर्तव्य,

बहुत बड़े है आज,

जैसा चाहा बनाये,

निज संतति को आज।

 

वसुधा आज पुकारती,

कुछ तो समझो आज,

गढ़ गढ़ अब विकसित करो,

निज संतति को आज।।

 

©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी            

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