लेखक की कलम से

मोहब्बत …

कहां दर्द किसको मैं कैसे बताऊं

तुम्हें याद रक्खू या फिर भूल जाऊं

जरा सा इशारा ही काफी था मुझको

मैं कैसे तुम्हें अपने दिल में छुपाऊं

 

जमाने की जंजीर टूटेगी कैसे

मोहब्बत में तकदीर बदलेगी कैसे

तेरी आरजू के सिवा कुछ नहीं है

मेरी जिंदगी बोलो संभलेगी  कैसे

 

तेरी राह में फूल हमने बिछाए

दिए प्रीत के लाख हमने जलाएं

मगर उस दिये के उजाले न देखें

बहुत गम उठाए बहुत मुस्कुराए

 

अभी इश्क जद्दोजहद में पड़ा है

तड़पता हुआ एक दिल रो पड़ा है

जमाने की आंखों से देखो ना मुझको

मेरा दिल तेरे रास्ते में खड़ा है

 

©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज                

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