लेखक की कलम से
तूफान …
तूफान उठ रहा है , दिल का कोना -कोना ।
‘मनु’आज बन चुका , वह आखिरी खिलौना ।।
इक उम्मीद का दिया , हम जलाएं तो कैसे ?
घड़ी भर की हंसी है , पल अगले ही रोना ।।१
आया तूफान है भारी , हिल रहा है समंदर ।
अंतस भी मचा है , शब्दों का बवंडर ।
ललनाओं की चीखें, कहीं सुहाग लूटा है।
रुदन है चहुंओर , जैसे हिलता है अंबर ।।२
उम्मीद के दामन में , अंधियारा बहुत है ।
इच्छाएं हैं दुबकी , ये वक्त लंबा बहुत है ।
सपनों की जमीं पर, ध्रुव तारा है सिसका ।
इस तूफान का अंदर , हलचल ही बहुत है ।।३
ऐ कलम तुम सुनो , खामोश ही रहना ।
बिखरे हैं कांटे पाथ, तुझे फूल है चूनना ।
है आखर सुमनों का , इक तुझमें है ड़ेरा ।
दूर मंजिलें हैं हमसे , बाकी बचा है कहना ।।४
©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़