लेखक की कलम से

पुस्तक समीक्षा : प्रतिबद्धताओं की संवेदनशील उदात्त अभिव्यक्ति का दस्तावेज…

अल्पना सिंह स्त्री विमर्श, प्रेम से जुड़े मुद्दों और प्रसंगों तथा लोकमंगल से जुड़ी कामनाओं को पूरी शिद्दत से उठाने वाली कवयित्री हैं। इन विषयों पर आते ही उनकी कविता के कथ्य जीवंत हो उठते हैं। उनके भावों का उद्वेग अपने चरम पर होता है और अभिव्यंजना अपना उपयुक्त मार्ग स्वयं प्रशस्त कर लेती है। रचनाकार में इन विषयों के कई बार नये कोण और अनछुए धरातल तक पहुंचने की ललक दिखायी देती है। इस संग्रह में दो तरह की कविताएं हैं। एक में संवेदना की केन्द्रीयता है तो दूसरे में विचारों की। सुखद है कि विषय के अनुरूप भाषा का प्रयोग है और आंतरिक छंदों का सृजन भी। उनके पास भावों और संवेदनाओं की ही बड़ी पूंजी नहीं है, बल्कि वे चेतना की जाग्रत अवस्था में भी रचती हैं। भाव विह्वलता विषयानुकूल ही है। उनका काव्य-दर्शन उदात्त मानवीय मूल्यों का पक्षधर है। हालांकि, आध्यात्मिकता उनकी कई कविताओं से झांकती है, किन्तु कई बार वह स्थिति वैचारिकता आग्रह या प्रतिबद्धताओं की कसौटियों पर खरी उतरने के बाद के समर्पण की स्थिति में उपलब्ध है। उनकी आध्यात्मिकता एकल के उत्कर्ष की हामी नहीं है, बल्कि वह समष्टि की सुख-शांति की पक्षधर है। उनका आध्यामिक रुझान वैराग्य से उपजा हुआ नहीं है, बल्कि वह तादात्म्य स्थापना के उत्कर्ष की उपबद्धि है।

उनकी प्रेम कविताएं बहुत सहजता और कोमलता से पाठकों के मनाभावों पर दस्तक देती हैं और फिर अपने साथ रागात्मक सम्बंधों की गहराई तक ले जाती हैं। उनके यहां प्रेम दैहिक से न सिर्फ वायवीय हो जाता है, बल्कि वह दर्शन और अध्यात्मिकता के उत्कर्ष तक बिना किसी बाधा और आडम्बर के पहुंच जाता है। उसका फलक व्यापक होते हुए जन्मजन्मांतर तक पहुंच जाता है। वह पाठक को अंजाने लोक तक भी ले जाता है, जो प्रेम की गहनता की विलक्षण उपलब्धि होती है। उनकी कविता की एक बानगी यूं है..’तुम्हारे इंतजार में/ ताकती नज़रें अनंत में/ जैसे खोज निकालूंगी/ दिगंतर असीम/ के संधि स्थल को।’ अल्पना सिंह के यहां प्रेम दैहिकता, संवेदना और आध्यात्मिकता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वैचारिकता पर भी ज़ोर देता है।

अपनी कविताओं में वे स्त्री के दायित्वबोध को ही रेखांकित नहीं करतीं, बल्कि उसके समूचे व्यक्तित्व और अस्तित्व की मर्यादा को प्रतिष्ठित करने की लालसा भी व्यक्ति करती हैं। वे इस बात की हामी हैं कि स्त्री का व्यक्तित्व महज उसके योगदान से सुरक्षित और समृद्ध नहीं होगा, बल्कि उसे पूर्णता तब मिलेगी जब वह अपने मनवांछित जीवन को अपनी शर्तों पर जी पायेगी। एक कविता की बानगी देखें-‘तमाम कामकाज के मध्य/ मैं तो भूल ही गयी थी/ कि मुझे जीना भी है/समर्पण से कर्तव्यों का निर्वाह करते-करते…./अब कल से/रवैया बदल दूंगी/ बहुत ही संभल-संभल कर/ जीना शुरू करूँगी/ अपने ही लिए/ बिना वक्त गँवाये।’

अल्पना सिंह का पहला ही कविता संग्रह उनके भावी समृद्ध और इंद्रधनुषी रचनात्मक भविष्य की आहटों वाला है। संक्षेप में कहा जाये तो यह कविता संग्रह अल्पना सिंह की प्रतिबद्धताओं की संवेदनशील उदात्त अभिव्यक्ति का दस्तावेज है। आशा है उनकी कविताओं में झांकता विवेक, सामाजिक विसंगतियों से मुठभेड़ की प्रतिबद्धता, भावों को उपयुक्त शब्दों में व्यक्त करने वाली स्पंदित भाषा पाठकों के मनोजगत पर अपनी पुख्ता छाप छोड़ पाने में सफल होगी।

-डॉ.अभिज्ञात

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