नववर्ष आगमन …
चाह कर भी थाम नहीं सकते
उम्र को समय को और मन के
अहसासो को थाम नहीं सकते
उम्र की डोर से फिर
एक मोती झड़ रहा है….
तारीख़ों के जीने से
दिसम्बर फिर उतर रहा है..
कुछ चेहरे घटे,चंद यादें
जुड़ गए वक़्त में….
उम्र का पंछी नित दूर और
दूर निकल रहा है..
गुनगुनी धूप और ठिठुरी
रातें जाड़ों की…
गुज़रे लम्हों पर इक पर्दा गिर रहा है..
ज़ायका लिया नहीं और
फिसल गई ज़िन्दगी…
वक़्त है कि सब कुछ समेटे
बादल बन उड़ रहा है..
फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है..
बूढ़ा दिसम्बर जवां जनवरी के कदमों मे बिछ रहा है
लो इक्कीसवीं सदी को इक्कीसवां साल लग रहा है
नववर्ष के आगमन को दुआओं से बुलाना
न जाने विश्व पर कौन सा संकट उमड़ रहा है
बीस ने जीने का अंदाज बदल कर जो सिखलाया
मुखौटो के पीछे मानव सुरक्षित महसूस कर रहा है।
?इक्कीस में सुख समृद्धि हो
मेरा दिल बार बार दुआ कर रहा है ….
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा