लेखक की कलम से
विश्वास ….
बच्चों तुम एक विश्वास बनों
रिश्तों की पगडंडी बनों
बनों निस्वार्थ भरोसा
जिस तरह से
फूल कुचले जाने पर भी
खुशबू नहीं छोड़ता
अपने अंतिम छंडों तक
अपने जीवन के सपनों को बोते रहो
पूरे होंने तक
खड़ा करो एक स्तम्भ
विश्व के भ्रमण के लिये
नयी रचना के भीतर घुसने के लिये
परस्पर खुद से युद्ध के लिये
तैयार रहो
कीमती है जीवन तुम्हारा
नयी सृष्टि और कल्पनाओं के लिये
तुम्हारी नाजुक हथेलियां
नजुक बना कर मत रखना
हथौड़े की मार जैसे बनाना
तुम इंद्रधनुष के रंग हो, जैसे नहीं
दुनिया को रचना और रंगना है तुम्हें
मगर मत भूलना अपनी भूमिका
माता पिता के प्रति प्रेम
और माता पिता बन के भी
उनके लिये तुम दुनिया हो जाते है
जब तुम्हें जन्म देते हैं
बदल दो संसार की दृष्टि और सृष्टि
बच्चों तुम्हारे हाथों में ही संसार की डोर है
बनों नाव पार करने के लिये ।
©शिखा सिंह, फर्रुखाबाद, यूपी