लेखक की कलम से

चाहत ….

शब भी अपने पूरे यौवन पर आयी है |
और चाँदनी देख चाँद को मुसकाई है |

उनकी चाहत की तड़पन सागर सी गहरी,
उसकी गहराई में मेरी तनहाई है |

इसी चाँदनी ने की है मेरी रुसबाई,
आखों में तारों के मोती भर लाई है |

नशा ख़्वहिशों का है रातों के पहरों में,
मेरे दिल में भी कुछ मस्ती सी छाई है |

झरना को तो आदत है धुन में बहने की,
भले इसी धुन में उसने ठोकर खायी है

 

©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड                             

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