ईश्वर के सहारे ….
बचपन खूबसूरत ही होता है अक्सर
ऐसा ज़रूरी भी नहीं
पर यह ज़रूर है कि
खिलौनों से भरपूर होता है चाहे
वास्तविक हो या काल्पनिक
ज़िंदगी जब रंग दिखलाती है
अपना
तब इन्सान ख़ुद
ख़ुद कुदरत के हाथों
बन जाता है खिलौना
वक़्त के सब खेल है
या फिर है यह केवल
नियति
कह कर फुसलाते है
स्वयं को भी
और दूसरों को भी
या फिर
साफ़ साफ़ शब्दों में
कहा जाता है कि
जैसा करम वैसा फल
बिलकुल सही
यही गीता में भी कहा है
इसलिए सावधान रहना ऐ
इंसान
अब तुम्हारी बारी है
अभी तो शुरूआत है
यह रंग तुम भी देखोगे
और तुम ख़ुद ही
ख़ुद के लिए कहोगे कि
सब क़िस्मत के खेल है
क्योंकि मैं नहीं मान सकती
कि ईश्वर इतना निश्ठुर हो सकता है
कि निश्छल इन्सान को
तड़पाए ,दर्द दे ,ये तो
न्याय नहीं
उसके आँसूओ का कुछ तो
हिसाब होगा
किसी की मानसिक स्थिति
बिगड़ने का कोई तो
दर्द होगा
सम्भल ए इंसान
भगवान के घर देर है
अंधेर नहीं
ग़र ऐसा नहीं तो फिर
ईश्वर को कौन मानेगा
मैं तो बस इतना जानती हूँ
ईश्वर तेरी माया तू ही जाने
हम तो बस है तेरे
सहारे
©सावित्री चौधरी, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश