छत्तीसगढ़

साकेत देगा विधायक प्रत्याशी या कुर्सी पर बैठेगा मिट्टी का माधो

कोरबा {गेंदलाल शुक्ल} । नगरीय निकाय चुनाव की प्रक्रि या आरंभ होते ही मतदाताओं में कोरबा के भावी महापौर को लेकर अटकलें होने लगी है। हर आम और खास यह जानने के लिए उत्सुक है कि इस चुनाव के बाद कोरबा को विधायक का नया प्रत्याशी मिलेगा या टप्पेबाज नेता किसी मिट्टी के माधो की ताजपोशी करेंगे?

दरअसल पिछले तीस वर्षों से विघटित विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) और अब नगर पालिक निगम कोरबा का प्रमुख ही विधायक पद का सशक्त दावेदार बनकर उभरता रहा है। इस सिलसिले की शुरूआत 1993 से हुई, जब तत्कालीन साडाध्यक्ष बनवारीलाल अग्रवाल ने भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर दावा ठोंका। उन्हें पार्टी की टिकट भी मिली और वे कटघोरा क्षेत्र से लगातार दो बार विधायक रहे। इसके बाद कांग्रेस के जयसिंह अग्रवाल साडाध्यक्ष बने और 1998 में पार्टी टिकट भी लेने में कामयाब रहे। लेकिन उन्हें बनवारीलाल अग्रवाल के हाथों मुंह की खानी पड़ी और वे कटघोरा से चुनाव हार गये। साडा की जगह सन 1998 में नगर पालिक निगम कोरबा का गठन हुआ। भाजपा की प्रथम निर्वाचित महापौर सुश्री श्याम कंवर अपवाद रहीं। उन्होंने कटघोरा की जगह रामपुर से भाजपा टिकट पर दावा किया, लेकिन तत्कालीन विधायक और पार्टी के कद्दावर नेता ननकीराम कंवर का टिकट नहीं काट पायी। सन 2004 में भाजपा के लखनलाल देवंागन महापौर बने। उन्हें 2008 में तो नहीं, लेकिन 2013 में कटघोरा से टिकट मिली और विधायक बने। इस बीच 2008 में कटघोरा विधानसभा क्षेत्र का परिसीमन हुआ और कोरबा विधानसभा का गठन हुआ। पूर्व साडाध्यक्ष और कांग्रेस नेता जयसिंह अग्रवाल को टिकट मिली और वे आज तीसरी बार कोरबा विधायक हैं। सन 2009 के चुनाव में भाजपा के जोगेश लाम्बा महापौर बने। 2013 में उन्हें पार्टी ने कोरबा से टिकट दी, लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। 2014 में विधायक जयसिंह अग्रवाल की धर्मपत्नी श्रीमती रेणु अग्रवाल महापौर चुनी गयी।  विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस विधायक जयसिंह अग्रवाल की टिकट कटने की अटकलों के बीच उनका नाम तेजी के साथ कोरबा से कांग्रेस टिकट के दावेदार के रूप में उभरा। लेकिन जयसिंह अग्रवाल फिर रिपीट हो गये।

इस तरह पिछले तीस वर्षों के दौरान पूर्व साडा और वर्तमान नगर निगम के प्रशासनिक भवन साकेत ने ही क्षेत्र को विधायक टिकट का दावेदार दिया है। लिहाजा लोगों में अगले महापौर को लेकर उत्सुकता बनी हुई है। इससे अलग चर्चा यह भी है कि कांग्रेस और भाजपा के टप्पेबाज नेता महापौर के रूप में अपने लिए किसी प्रतिद्वंदी को पदासीन होने भी देंगे या किसी मिट्टी के माधो की ताजपोशी करेंगे, जिसे रिमोट से संचालित किया जा सके और आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी की टिकट पर दावा करने से रोक सकें।

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