मध्य प्रदेश

दुनियाभर में मशहूर संत लोटन बाबा नहीं रहे, एक तमन्ना रह गई अधूरी ..

रतलाम. दुनिया भर में भारत के लोटन बाबा के रूप में मशहूर रतलाम ज़िले के ग्राम कलमोड़ा के मोहनदास की मृत्यु हो गई. कलमोड़ा फंटे पर स्थित उनके आश्रम में हजारों लोगों की उपस्थिति में उनकी डोलयात्रा निकाली गई. इसके बाद देश भर से आए उनके शिष्यों की मौजूदगी में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ दाह संस्कार हुआ. शिष्यों के अनुसार संत लोटन बाबा की समाधि भी बनाई जाएगी. लोटन बाबा भारत के बाहर विदेशों की धरती पर भी लोट चुके थे.

लोटन बाबा के करीबी शिष्य राजेन्द्र ने बताया कि 71 वर्षीय लोटन बाबा वैष्ण्व संप्रदाय के प्रसिद्ध संत थे. उनकी रीढ़ की हड्डी में समस्या हुई, जिसके बाद 15 दिनों तक वह इंदौर अस्पताल में भर्ती रहे. लगातार गिर रहे स्वास्थ्य के चलते उनकी मृत्यु हो गया. अस्पताल में मौत के बाद उन्हें कलमोड़ा गांव में उनके आश्रम पर लाया गया. उनके मृत्यु की सूचना मिलते ही देशभर में फैले उनके भक्तों में शोक की लहर फैल गई. दूर-दूर से आए भक्तों ने उनकी डोल यात्रा निकाली.

लोटन बाबा को कुछ क्षेत्रों में लुढ़कन बाबा के नाम से भी जानते थे. बाबा लंदन सहित विदेशों के कई शहरों में लुढ़ककर यात्राएं कर चुके थे. दावा है कि उन्होंने अब तक 30 हजार किलोमीटर की दूरी लुढ़कते हुए तय की. भारत में रतलाम से वैष्णो देवी एवं अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों की धार्मिक यात्राएं भी उन्होंने लुढ़कते हुए की थी. 40 साल तक देशभर में लोट लगाकर यात्राओं के कारण उन्हें विश्वभर में ‘इंडिया का रोलिंग संत’ कहा जाता था. लोटन बाबा के नाम सबसे ज़्यादा दूरी तक लुढ़कने का रिकार्ड भी गिनीज़ बुक में दर्ज है. उन्होंने कई स्थानों पर हनुमान मंदिरों का निर्माण भी करवाया.

लोटन बाबा की एक यात्रा अधूरी रहने का अफसोस बाबा को ताउम्र रहा. लोटन बाबा ने वर्ष 2004 में विश्व शांति के उद्देश्य से रतलाम से पाकिस्तान स्थित प्रसिद्ध शक्ति पीठ हिंगलाज माता तक जाने के लिए यात्रा शुरू की थी. उनका इरादा गुरु नानक देव के जन्म स्थान ननकाना साहिब के साथ ही पाकिस्तान के अन्य धार्मिक स्थानों पर जाने का भी था. लेकिन, वीज़ा सहित अन्य औपाचरिकताएं पूरी न होने के कारण यात्रा को दिल्ली में कई दिनों तक रोकना पड़ा. मध्यप्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी कोशिशें कीं, लेकिन बाबा को पाकिस्तान जाने की अनुमति नहीं मिल पाई थी. तब बाबा ने वाघा बॉर्डर तक जाकर यात्रा समाप्त कर दी थी.

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