धर्म

यात्रा वृतांत, मंदिरों-आश्रमों से घंटा-घड़ियालों और राम-धुन सरयू नदी के तट पर सुबह से ही अयोध्या के वातावरण में आध्यात्मिक रस घोलती है ….

अक्षय नामदेव। “उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रेन कहां जो तू सोवत है “का पालन करते हुए 14 नवंबर को अयोध्या के अशर्फी भवन में हम सभी जल्दी ही जाग गए। अपनी शारीरिक स्थिति के कारण कल हनुमान गढ़ी एवं राम जन्मभूमि परिसर स्थित राम लला के दर्शन के लिए पैदल भ्रमण के कारण मेरे पैरों में कुछ दर्द सा महसूस हो रहा था इसके बावजूद भी मुझे कल का पैदल चलना मेरे लिए आनंददाई रहा और आज फिर में चलने को तैयार हूं। रामानुज आश्रम अशर्फी भवन में सुबह सुबह मंदिर में पूजा अर्चना प्रारंभ हो गई थी। वहां रहने वाले संस्कृत के विद्यार्थियों के द्वारा प्रातः काल किए जा रहे मंत्रोचार से आश्रम का वातावरण गुंजायमान हो रहा था। अयोध्या में सुबह का वातावरण अत्यंत मनोरम रहता है। सरयू नदी के तट पर बसे भारत की प्राचीनतम तीर्थ नगरी अयोध्या में सुबह से ही विभिन्न मंदिरों एवं आश्रमों से घंटा, घड़ियालों की आवाज सुनाई देती है उस पर हवाओं से लहर मारकर आती राम धुन अयोध्या के वातावरण में आध्यात्मिक रस घोलती है। ऐसे में आप सोए भी कैसे रह सकते हैं?

आज हमें अयोध्या से रवाना होकर कानपुर भी पहुंचना था। शाम 5:30 बजे हमारी कानपुर से ट्रेन थी। बेतवा एक्सप्रेस में हमारा रिजर्वेशन था। इसके बावजूद मन में यह इच्छा थी कि अयोध्या से कानपुर रवाना होने के पूर्व हम एक बार फिर मां सरयू के तट का दर्शन कर ले। समय की सीमा का ध्यान रखते हुए हम सभी सुबह स्नान ध्यान कर जल्दी तैयार हो गए तथा अशर्फी भवन में स्थित भगवान लक्ष्मी नारायण का दर्शन किया। मंदिर परिसर में अनेक विद्यार्थी श्रीरामचरितमानस का पाठ कर रहे थे। वही आश्रम में उपस्थित महंत अनिरुद्ध को मैंने जानकारी दी कि हम कुछ देर में यहां से रवाना हो जाएंगे तो उन्होंने एक-दो दिन रहने का आग्रह किया। हमने अपना कार्यक्रम उन्हें बताया तो वे कहने लगे कि नाश्ता करके ही जाना होगा। हमने उनके इस आदेश का पालन किया। कुछ देर आश्रम में रुकने के बाद उन्हें भेंट पूजा देकर आशीर्वाद लिया। अनिरुद्ध ने हमें दोबारा अयोध्या आने का आमंत्रण दिया। हमने इस आमंत्रण को हंसकर स्वीकार भी कर लिया। आखिर हमने रामलला के सामने तो संकल्प लिया ही है कि वर्ष 2024 में जब मंदिर का निर्माण पूरा हो जाएगा तो हम अयोध्या के भव्य रामलला के मंदिर को देखने एक बार अवश्य आएंगे।

“प्रवसि नगर कीजे सब काजा, हृदय राखि कौशलपुर राजा” के स्मरण के साथ अशर्फी भवन के प्रांगण से अपनी गाड़ी बाहर निकाल कर हम वहां से एक बार फिर मां सरयू नदी के तट पर जा पहुंचे। मां सरयू के तट पर सुबह का नजारा कुछ और था। नदियों के तट की यही तो खास बात होती है। शाम और सुबह का नजारा नदियों के तट पर अलग-अलग होता है। हमने कल देर शाम तक मां सरयू के तट पर जो आध्यात्मिक आनंद लिया था वही आनंद तो हमें सुबह-सुबह सरयू तट पर एक बार फिर वापस खींच ले आई थी। कल शाम के वक्त सरयू घाट के आसपास को नहीं देख पाए थे उसे हम आज सुबह देख पा रहे थे। यहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ की सरकार ने काफी काम किया है। घाटों को सुंदर बनाने के अलावा पास में ही एक उद्यान विकसित किया गया है जहां काफी समय बिताया जा सकता है। मुख्य सरयू नदी के अलावा एक बाईपास नहर का सुंदर निर्माण किया गया है जिसमें दोनों तट पर सुंदर सिंधियों का निर्माण किया गया है। विशेष पर्व एवं मेले के समय इस बाईपास नहर में भी स्नान की सुविधा है इस बाईपास सरयू नहर के तट की सीढ़ियां इतनी लंबी है कि यहां खास पर्वों पर लाखों लोग स्टेडियम की तरह बैठ सकते हैं। यही सरयू नदी के तट के ही पास स्वर सामाज्ञी, भारत कोकिला लता मंगेशकर की स्मृति में एक भव्य चौराहे का निर्माण किया गया है। लता दीदी के निधन के बाद महंत योगी आदित्यनाथ ने उनकी स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए इस चौराहे पर एक विशाल वीणा का निर्माण कराया है जिसमें मां सरस्वती का चित्र उकेरा गया है। यह वीणा लगभग 14 टन वजनी एवं 40 फुट लंबी है जो देखने में अत्यंत सुंदर है। लता दीदी के प्रति सम्मान और उनकी स्मृतियों को याद करते रहने का यह एक अच्छा प्रयास है। लता दीदी की याद में बने चौराहे पर हमने कुछ फोटोग्राफ्स भी लिए।

हम कह सकते हैं कि अयोध्या को उसकी गरिमा अनुरूप सजाने संवारने के लिए योगी सरकार पूरे मनोयोग से कार्य कर रही है।सुबह लगभग 10:00 बजे तक हम सरयू तट पर ही रहे और वहां का अध्यात्मिक आनंद लेते रहे। तट की सीढ़ियों पर ही बैठे हम चर्चा करते हुए सरयू का नजारा देख रहे थे थे कि भैया गौरव अवस्थी का फोन आया और उन्होंने हमारा हाल चाल लिया तथा आगे का कार्यक्रम पूछा। हमने उन्हें जानकारी दी कि कुछ देर में हम यहां से निकल कर कानपुर के लिए रवाना होने वाले हैं तो उन्होंने हमें कहा कि लखनऊ पहुंचने के पहले मुझे फोन करिएगा।

हमने एक बड़ी बोतल में मां सरयू का पवित्र जल भरा ताकि उसे घर ले जा सके। हिंदू समाज की परंपरा में नदियों के पवित्र जल को अपने घर में रखने की प्राचीन परंपरा है। पूजा पाठ तथा खास मौकों पर पवित्र नदियों के जल की आवश्यकता तो पड़ती ही है। मां सरयू को प्रणाम करके हम अयोध्या से कानपुर के लिए रवाना हो गए।

दोपहर लगभग 1:00 बजे हम लखनऊ पहुंच चुके थे। लखनऊ से होकर गुजरते मुझे यह बात खेदित करती रही कि मैं लखनऊ क्यों नहीं रुक पा रहा हूं। लखनऊ के आसपास तो भ्रमण के योग्य अनेक स्थान है। खासकर लखनऊ के पास नैमिषारण्य तीर्थ स्थल का विशेष महत्व है। वर्ष 2019 में देवभूमि उत्तराखंड यात्रा कार्यक्रम में निरुपमा और मैकला नैमिषारण्य का भ्रमण कर चुकी थी। मैं शासकीय कार्यों में संलग्न होने के कारण देवभूमि उत्तराखंड की उस यात्रा में हरिद्वार से शामिल हुआ था इसलिए मैं नैमिषारण्य भ्रमण से वंचित रहा था। लखनऊ उत्तर प्रदेश की राजधानी होने के साथ उसका कई संदर्भों में विशेष महत्व है। कभी नवाबों की नगरी कहीं जाने वाले लखनऊ में अब योगी का राज है। सुना है कि बनारस की सुबह और लखनऊ की शाम का क्या कहना! बनारस की सुबह तो मैंने देखी है परंतु लखनऊ से दोपहर में गुजार रहा हूं। लखनऊ शहर के बीच से होते हुए हाईकोर्ट पार कर रहे थे तभी हमारे पंडित राम निवास तिवारी ने मौन तोड़ते हुए कहा-अक्षय

बाबू मैं काफी वर्ष पहले सत्तू भैया (गौरेला के स्वर्गीय सत्यनारायण तिवारी ) उत्तर प्रदेश के जगदीशपुर अधिवेशन में भाग लेने के लिए आया था। जगदीशपुर से लौटते हुए हम दोनों लखनऊ आए थे तथा यहां भूलभुलैया मैं घूम रहे थे वही के गार्डन में हमारी अरुण वोरा से मुलाकात हुई। उन दिनों अरुण वोरा के पिताजी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता स्वर्गीय मोतीलाल वोरा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे। अरुण वोरा से वहां हुई मुलाकात ने हमें वहां राजभवन पहुंचा दिया था। इस बीच तिवारी सत्तू भैया के बारे में अपने से जुड़ी पुरानी बातों को याद करके बताते रहे। गौरेला पेंड्रा मरवाही तथा अविभाजित बिलासपुर जिले में सार्वजनिक जीवन से जुड़ा ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो सत्तू भैया के व्यक्तित्व से परिचित और प्रभावित नहीं रहा होगा? कोटा विधानसभा क्षेत्र के तत्कालीन विधायक एवं अविभाजित मध्य प्रदेश में समान प्रशासन विभाग सिंचाई विधि विधाई मंत्री तथा मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में विधानसभा अध्यक्ष के पद पर सुशोभित रहे राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के करीबी रहे।

सत्यनारायण तिवारी यानि सत्तू भैया गौरेला नगर पंचायत के अध्यक्ष रहने के साथ लंबे समय तक कांग्रेस की शीर्ष राजनीति में रहे थे। अपने हंसोड़ अंदाज, जिंदादिली, दबंग व्यक्तित्व सरल स्वभाव तथा सैर सपाटे के रसिया होने के कारण वे इलाके के जनमानस में काफी लोकप्रिय रहे। पूरा इलाका उन्हें सत्तू भैया के नाम से ही जानता था। वे राम निवास तिवारी के बड़े भाई जैसे थे तथा उनसे मित्रवत व्यवहार रखते थे। दोनों का बड़ा लंबा समय साथ गुजरा। यदा-कदा मुझे भी अवसर मिला उनकी मंडली के बीच उठने बैठने का। गौरेला में हसन सर के निवास में उनकी मंडली अक्सर विराजमान रहती थी। सत्तू भैया खाने-पीने के बहुत शौकीन थे। पेंड्रा में भी उनके मित्रता का बड़ा दायरा होने के बावजूद कई बार पेंड्रा आने पर वह मेरे पास मेरे घर में आकर बैठते। अपने घर आने पर मैं उनके लिए चाट अवश्य मंगाता। उनकी “कहो राजन “तथा प्रणाम करने पर “खुश रहो राजन”का संबोधन आज भी मुझे खूब याद आता है। वे कुर्ता ,पजामा और जैकेट पहनने के विशेष शौकीन थे। उनकी बुलेट की सवारी भी गजब की थी।हम उनके बारे में बातें करते ही जा रहे थे तभी गौरव भैया का एक बार फिर फोन आया कि आप लोग कहां पहुंचे हैं हमने बताया हम लोग लखनऊ से गुजर रहे हैं तो उन्होंने हमें निर्देश के भाव से कहा कि मैं आपको एक नंबर दे रहा हूं आप लखनऊ से बाहर निकल कर नवाबगंज के पहले टोल पहुंचकर उस नंबर पर बात करें। नवाबगंज में आपके भोजन की व्यवस्था है।

मैं उनसे निवेदन करता रहा कि हम रास्ते में कहीं भोजन कर ही लेंगे तो उन्होंने मुझे कहा कि हम जैसा कह रहे हैं वैसा करिए। मैं क्या करता? सोच विचार कर ही रहा था कि एक अपरिचित नंबर से फोन आया उन्होंने पूछा कहां पहुंचे हैं मैंने बताया कि टोल के पास ही है तो उन्होंने कहा कि कुछ किलोमीटर आगे आने नवाबगंज पड़ेगा वहां मैं मुख्य मार्ग पर स्थित आनंद भोग रेस्टोरेंट में आप लोगों का इंतजार कर रहा हूं। मैंने उनसे भी अनुरोध किया कि आप परेशान ना हो हम रास्ते में अपनी व्यवस्था कर लेंगे तो उन्होंने कहा कि मैं वहां पहुंच चुका हूं आप आइए।

दरअसल गौरव भैया ने हमें जो नंबर दिया था वह उनके जीजा मनोज मिश्रा का था। मनोज मिश्रा गौरव भैया की छोटी बहन के पति हैं। वे नवाबगंज के प्रतिष्ठित पत्रकार होने के साथ रिसॉर्ट चलाते हैं जहां शादी ब्याह के कार्यक्रम पार्टियां इत्यादि आयोजित होती रहती है। इतने व्यस्त होने के बावजूद वह हमें वहां आनंद भोग रेस्टोरेंट के सामने खड़े मिले। मनोज सहज ,सरल ,आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक होने के साथ वहां के अच्छे पत्रकार है। वहां हमारी अत्यंत आत्मिक मुलाकात हुई तथा हमने वहां पारिवारिक वातावरण में भोजन किया। उन्होंने हमें वहां रुकने का भी आग्रह किया परंतु उन्हें हमने अपनी असमर्थता जताते हुए उन्हें दीदी सहित अमरकंटक आने का अनुरोध किया तथा एक बार फिर हमारी गाड़ी कानपुर की ओर चल पड़ी।

रास्ते में हमें सड़क के किनारे अनेक महिलाएं टोकरी में बिही लेकर बैठे बेचते मिली। यह गंगा कछार के बगीचे की बिही थी। हमने एक जगह गाड़ी रोककर बिही खरीदी तथा गंगा कछार की बिही का आनंद उठाया। शाम होने को थी और अब हम कानपुर के नजदीक पहुंच रहे थे। गंगा नदी पर बने बड़े पुल को पार करते हुए हमने मां गंगा को प्रणाम किया। जैसा कि हमारे ड्राइवर विनय ने हमें निर्धारित समय में पहुंचा देने का वादा किया था लगभग 4:30 बजे हमारी गाड़ी कानपुर रेलवे स्टेशन के सामने खड़ी हो गई। विनय को उसकी सेवाओं के लिए धन्यवाद देते हुए उसे पारितोषिक एवं पारिश्रमिक देकर विदा किया। एक कुली की मदद से हम सामान सहित स्टेशन के भीतर पहुंचे वहां कानपुर दुर्ग बेतवा एक्सप्रेस में हम सवार हो गए। निर्धारित समय पर ट्रेन रवाना हुई।

हमारी ट्रेन पेंड्रा की ओर बढ़ी चल रही थी और मैं आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण के रजत जयंती समारोह से जुड़ी स्मृतियों के बारे में सोच रहा था। मैं मन ही मन पंडित माधव राव सप्रे शोध संस्थान भोपाल मध्य प्रदेश के के संस्थापक एवं निदेशक श्रद्धेय विजय दत्त श्रीधर के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा था जिन्होंने सेतु का काम करते हुए मुझे वरिष्ठ पत्रकार गौरव अवस्थी से जोड़ा।  विजय दत्त श्रीधर ने ही गौरव अवस्थी जैसे सरल, सहज,उदार व्यक्तित्व से मेरी भेंट करा दी थी। अच्छे लोगों के साथ से अच्छे लोगों का ही साथ जुड़ जाता है। इस तरह यह साहित्यिक और आध्यात्मिक यात्रा मेरे जीवन के एक ऐसे अध्याय के रूप में जुड़ गया जो आजीवन याद रहेगी।

 

समाप्त

 

 हर हर नर्मदे

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