धर्म

यात्रा वृतांत, अयोध्या में हनुमानगढ़ी एवं राम जन्मभूमि स्थित राम लला का दर्शन एवं मां सरयू की महाआरती ….

अक्षय नामदेव। 13 नवंबर को दोपहर लगभग 2:30 बजे हम अयोध्या के भ्रमण के लिए अशर्फी भवन से बाहर निकले। अयोध्या की भीड़ भाड़ भरी सड़कों को देखते हुए हमने निर्णय लिया कि हम अपनी गाड़ी अशर्फी भवन में ही खड़े रहने दे और वहां स्थानीय साधनों से ही यहां वहां दर्शन के लिए जाएं। हमारी गाड़ी के ड्राइवर विनय ने कहा कि वह भी हमारे साथ जाना चाहता है। हमें भला क्यों आपत्ति होती? विनय के स्थानीय होने के कारण उसके हमारे साथ रहने से हमें भ्रमण में फायदा ही था।

सरल, सज्जन विनय अब हमारा अयोध्या के भ्रमण में मार्गदर्शन कर रहा था। अशर्फी भवन के सामने से ही हमने एक ई रिक्शा लिया तथा सबसे पहले हनुमान गढ़ी जाने का निर्णय लिया। ई-रिक्शा वाले ने मात्र 50 रुपए में हमें हनुमान गढ़ी पहुंचाने को तैयार हो गया। उसने हमें हनुमान गढ़ी के लगभग 500 मीटर पहले मुख्य मार्ग में बने प्रवेश द्वार के पास उतारा। वैसे तो अयोध्या में वर्षभर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है परंतु कार्तिक एव अगहन तथा मांघ महीने में यहां अपेक्षाकृत ज्यादा ही भीड़ रहती है।

हिंदू परंपरा में ये महीने तीर्थ दर्शन, नदियों में स्नान तथा दान पुण्य के लिए विशेष पुन्यदाई माने गए हैं इसलिए भारत के कोने कोने से भगवान राम के भक्त इन खास महीनों में विशेष रूप से पहुंचते हैं तथा यहां पवित्र सरयू नदी में स्नान, तटवास, दान, भजन के साथ भगवान राम की जन्म भूमि की माटी को अपने माथे से लगाते हैं यही कारण है कि अयोध्या की ज्यादातर सड़कें एवं गलियां श्रद्धालुओं से पटी पड़ी है।

हनुमान गढ़ी प्रवेश द्वार के पास से ही फूल, माला, श्रृंगार एवं अन्य धार्मिक सामग्रियों की दुकानों के अलावा विशेष रूप से प्रसादी की दुकानें सजी हुई है खासकर हनुमान को लगने वाले प्रिय भोग लड्डू प्रसाद वाली मिठाइयों की दुकान से आती हुई घी की खुशबू का कहना ही क्या? जितनी श्रद्धालुओं की भीड़ उतनी ही मिठाइयों की सजी दुकानें! किसी के लिए अनुमान लगा पाना पाना मुश्किल है कि दिन भर में अयोध्या में खासकर हनुमान गढ़ी में कितना टन लड्डू प्रसाद भोग में चढ़ता होगा? हनुमान की लीला भी तो अपरंपार है।

एक दुकान से हमने हनुमान के लिए लड्डू एवं पेड़ा का भोग प्रसाद लिया तथा फूल वाले से हनुमान के लिए माला खरीदी और उनका स्मरण करते हुए हनुमान की गड़ी के मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुंच गए। हनुमानगढ़ी के सामने तथा चारों तरफ उत्तर प्रदेश पुलिस की विशेष तैनाती है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में पुलिस जवान जिनमें बड़ी संख्या में महिला पुलिस भी शामिल है हनुमानगढ़ी पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को व्यवस्थित लाइन से मंदिर में प्रवेश कराने के साथ सुरक्षा पर विशेष नजर बनाए हुए दिखे। हनुमान गढ़ी मंदिर की बनावट कुछ इस तरह दिखाई दे रही है जैसे वह किसी छोटी पहाड़ी पर स्थित है।

हनुमान गढ़ी के प्रवेश द्वार से लगभग 75 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़ते हुए हम हनुमान गढ़ी परिसर में पहुंचे। गढ़ी परिसर में पुलिस बल की और ज्यादा तैनाती दिखी। श्रद्धालुओं की भी बड़ी संख्या वहां मंदिर परिसर में मौजूद थी। हम दर्शन के लिए लाइन में लग गए तथा कुछ देर लाइन में चलते रहने के बाद वह समय भी आया जब हमें पवनसुत हनुमान के पवित्र पावन दर्शन प्राप्त हुए।

हनुमानगढ़ी के मुख्य गर्भ गृह के सामने ऊंचाई पर खड़े हो कर दो युवा पुजारी भक्तों से प्रसाद एवं माला लेकर हनुमानजी को अर्पित कर तेजी से वापस करते जाते। पुलिस सुरक्षा के बावजूद भक्तों की रेलम पेल तथा जय राम, जय हनुमान जैसे नारों से हनुमान गढ़ी का पूरा परिसर गूंज रहा था। हम हनुमान का दर्शन करने के पश्चात उनके सामने बने चबूतरे पर बैठ गए जहां से बार-बार हनुमान का दर्शन हो रहा था। वहीं बैठ कर हमने हनुमान की आराधना की तथा प्रसाद ग्रहण किया। वहां मैंने देखा कि देश दुनिया से आए सैकड़ों हनुमान भक्त वहां परिसर में बैठकर हनुमान का जाप कर रहे हैं।

“कौन सो काज कठिन जग माही जो नहीं होय तात तुम पाही” हनुमान का सिद्ध मंत्र है। इसके अलावा हनुमान चालीसा, बजरंग बाण जैसे पाठ भी भक्तों द्वारा किए जा रहे थे। परिसर में ही हनुमान भक्तों के समूह श्रीरामचरितमानस तथा राम जय राम जय जय राम का पाठ कर रहे थे। पूरा हनुमान गढ़ी परिसर राम-मय तथा हनुमान-मय लगता है। नहीं चाहता कि वहां से टस-मस हुआ जाए। हनुमान के समक्ष काफी देर बैठे रहने के बाद हम मंदिर परिसर का भ्रमण करने लगे। लगभग 52 बीघा ऊंचे टीले पर बने हनुमान गढ़ी के बारे में जो जानकारी हमें मिली उसके अनुसार यह मंदिर 10 वीं शताब्दी में बनाया गया था।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान राम रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद माता सीता सहित अयोध्या वापस लौटे थे तो हनुमान भी उनके साथ अयोध्या आ गए थे तब भगवान श्रीराम ने हनुमान के यही रहने की व्यवस्था की थी। हनुमान गढ़ी परिसर का दर्शन भ्रमण करने के पश्चात हम वहां से बाहर आए तथा वहां से रामलला का दर्शन करने पैदल राम जन्मभूमि जाने के लिए निकल पड़े।

हनुमान गढ़ी से राम जन्मभूमि की दूरी अनुमानित लगभग ढाई किलोमीटर होगी जहां पैदल जाने का ही एकमात्र विकल्प है। हम पैदल चलते हुए राम जन्म भूमि का दर्शन करने आगे बढ़ते जा रहे थे। यह मार्ग अपेक्षाकृत संकरा एवं भीड़ भरा है इसलिए भविष्य की व्यवस्था ठीक करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार यहां संकरी सड़क को चौड़ी करने के लिए सड़क के दोनों ओर के निर्माण को अधिग्रहीत कर तोड़फोड़ अभियान चलाई हुई है इसलिए सड़क गर्द गुबार से भी भरी हुई है।

दशरथ महल होते हुए हम राम जन्मभूमि निर्माणाधीन राम मंदिर परिसर से लगभग एक किलोमीटर पहले पहुंच गए। यहां सड़क के दोनों ओर अत्यंत प्राचीन आश्रम एवं निर्माण है जो विभिन्न हिंदू संप्रदाय से संबंधित हैं। त्रेता युगीन अयोध्या के इतिहास की गवाही यहां के प्राचीन निर्माण देते हैं। यहां पुलिस सुरक्षा व्यवस्था और ज्यादा चुस्त-दुरुस्त है। पुलिस के दो चेक पोस्ट पार करने के बाद बाद यहां पुलिस द्वारा आने वाले श्रद्धालुओं की जांच बहुत ही कड़ाई से की जाती है। जेब में पैसे के अलावा कुछ नहीं रख सकते ।

अन्य सामग्री जैसे मोबाइल, अंगूठी, कड़े,पिन, दवाइयां जैसी अन्य सामग्री आपको बाहर ही छोड़ना पड़ता है। इसके लिए सड़क के दोनों ओर बड़ी तादाद में लाकरों की व्यवस्था है जो 20 रुपए लेकर आपकी सामग्री सुरक्षित रूप से लाकर में रख कर चाबी आपको दे देते हैं। हमने भी अपनी सामग्री एक लाकर वाले के पास जमा कर दी तथा लाइन में लग गए। महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग लाइन लगाई गई थी। विभिन्न स्तरों पर सघन पुलिस जांच से गुजरते हुए हम राम जन्मभूमि निर्माणाधीन मंदिर परिसर के बाहर प्रवेश द्वार तक पहुंच गए। वहां प्रवेश द्वार से लेकर राम लला जहां विराजमान है वहां तक जाने के लिए सिर्फ लगभग 12 फुट चौड़ा कॉरिडोर बनाया गया है जो दोनों और जालियों से घिरा हुआ है।

कॉरिडोर से गुजरते हुए हम जालियों से सिर्फ राम जन्म भूमि परिसर निर्माणाधीन क्षेत्र को देख पा रहे थे। सुरक्षा कारणों से मंदिर निर्माणाधीन क्षेत्र में जाने की इजाजत श्रद्धालुओं को नहीं है। पूरा कॉरिडोर श्रद्धालुओं से भरा था तथा कतारबद्ध होकर आगे बढ़ रहा था। कॉरिडोर पर आगे बढ़ते बढ़ते आखिरकार वह क्षण आ ही गया जब हम पंडाल नूमा संरचना में विराजमान राम लला के समक्ष खड़े थे। लगभग 20 फीट की दूरी से हमें भगवान राम लला के दर्शन प्राप्त हुए। प्रभु श्रीराम के दर्शन से मेरा रोम रोम सिहर गया। वहां राम लला के सामने कॉरिडोर में ही न्यास के कार्यकर्ताओं द्वारा निशुल्क रूप से वहां पहुंचने वाले भक्तों को प्रसाद दिया जा रहा है। राम लला के सामने कॉरीडोर में तैनात पुलिस श्रद्धालुओं को बहुत ज्यादा खड़े नहीं होने देती। श्रद्धालुओं की रेलम पेल जो है।

इस बात का मुझे भान है कि देश दुनिया के करोड़ों, अरबों जनमानस के आस्था का केंद्र राम जन्मभूमि में राम मंदिर का निर्माण का मार्ग ऐसे ही प्रशस्त नहीं हो गया है। राम जन्मभूमि के 495 साल से ज्यादा के लंबे ऐतिहासिक संघर्ष में से हम सिर्फ अपनी याद में 30-35 साल के संघर्ष के साक्षी रहे हैं। 6 दिसंबर 1992 की घटना के पूर्व भारत के ज्यादातर लोगों को राम मंदिर एवं राम जन्मभूमि से संबंधित विवाद के बारे में शायद कम ही पता रहा होगा। यह बात और है ?कि राम जन्मभूमि के लिए कई दशक तक चले इस संघर्ष में हमारे अनगिनत साधु-संतों तथा धर्म परायण लोगों को अपना बलिदान देना पड़ा।

राम जन्मभूमि परिसर कॉरिडोर में भ्रमण करते हुए मैं उन अनगिनत लोगों को मन ही मन प्रणाम करता रहा जिन्होंने हमारे आराध्य भगवान राम की जन्मभूमि के लिए अपना बलिदान दिया। परिसर में ही रहते मुझे स्मरण आया विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल और महंत अवैद्यनाथ का का जिन्होंने अपना पूरा जीवन राम जन्मभूमि के लिए समर्पित कर दिया। राम मंदिर का निर्माण भारत के इतिहास की असाधारण घटना ही कही जाएगी। सब कुछ प्रमाणिक होने के बाद भी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में किस किस तरह से बाधा आई होगी उसे मैं अपने पेंड्रा के अरपा उद्गम के संरक्षण के लिए संघर्ष से ही जोड़कर देखता हूं तो मुझे इसका अंदाजा सहज ही हो जाता है।

अरपा उद्गम के लिए संघर्ष में मैंने देखा है कि किस तरह से लोग विधर्मीयों का साथ देते हैं। चंद कागज के टुकड़ों के लिए कैसे लोग अपना धर्म और इमान बेचने को तैयार हैं। अरपा उद्गम को तथाकथित कहते उन्हें शर्म नहीं आती। मां अरपा के खिलाफ षड्यंत्र करने वालों का साथ देते हैं। अरपा उद्गम के लिए संघर्ष के रास्ते हमें जीवन के कई खट्टे मीठे अनुभव मिले हैं जो निश्चित रूप से भविष्य का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

मेरे जीवन का यह सौभाग्य रहा कि वर्ष 2004 से लेकर 2007 तक “अमरकंटक फ्री जोन बनाओ” आंदोलन के कारण मैं पत्रों के माध्यम से अशोक सिंघल के संपर्क में रहा था। राम जन्म भूमि न्यास से जुड़े चंपत राय से भी मेरा अमरकंटक फ्री जोन बनाओ” “आंदोलन के लिए पत्राचार से संपर्क बना रहा । वर्तमान में चंपत राय राम मंदिर के निर्माण का कार्य देख रहे हैं। अपने अयोध्या प्रवास में मैं राम मंदिर निर्माण परिसर को उस ढंग से नहीं देख पाया जिस तरह से आज तक पर राम मंदिर निर्माण को लेकर देश की प्रख्यात पत्रकार श्वेता सिंह की रिपोर्ट में परिसर को दिखाया जाता है।

भगवान राम लला के दर्शन करने की वर्षों की मुराद पूरी होने के बाद हम उनका स्मरण करते हुए कारीडोर में इस संकल्प के साथ आगे बढ़ते रहे कि वर्ष 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा अनुरूप जब राम मंदिर के भव्य मंदिर का निर्माण पूर्ण हो जाएगा तब हम फिर एक बार सपरिवार अयोध्या आएंगे और इतिहास परिवर्तन के साक्षी होंगे।

राम लला के दर्शन के लिए शासन प्रशासन एवं राम जन्म भूमि न्यास द्वारा बनाई गई सुरक्षा व्यवस्था से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि आज भी राम जन्म भूमि का मामला कितना अधिक संवेदनशील है? जिस देश के कण-कण में राम बसे हैं उसी देश में राम जन्मभूमि को लेकर विधर्मीयों द्वारा द्वारा लगभग 495 से अधिक समय तक जो प्रपंडा खड़ा किया गया उसी का परिणाम है कि जनमानस को अपने आराध्य राम का दर्शन इस तरह संगीनों के साए में करना पड़ रहा है।

जब से सुप्रीम कोर्ट का राम जन्म भूमि को लेकर भगवान राम के पक्ष में फैसला आया है तथा बहुप्रतीक्षित राम मंदिर के निर्माण में तेजी आई है तब से देश विदेश में फैले राम भक्त अयोध्या पहुंच रहे हैं उससे अयोध्या का माहौल बदला हुआ तो है। यहां हमें हजारों की संख्या में लाइन लगाए खड़े श्रद्धालुओं के अलावा उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से स्कूली बच्चे भी कतार में आते जाते दिखे जो इस ऐतिहासिक घड़ी को अपनी नजरों से अपने शिक्षकों के साथ देखने आए थे।

राम जन्मभूमि परिसर की माटी अपने माथे लगाए मन मस्तिष्क में चल रही वैचारिक उत्तेजना के साथ हम कारीडोर के रास्ते परिसर से बाहर आ गए।

शाम के लगभग 5:30 बज चुके थे। कुछ दूर पैदल चलकर हमने एक ई रिक्शा लिया तथा वहां से सीधे मां सरयू नदी के तट पहुंचे। मां गंगा की सहायक नदी सरयू के तट पर पहुंचने के बाद मन मस्तिष्क में चल रही वैचारिक उथल-पुथल से शांति मिली। दूर तक फैला सरयू नदी का पाट संध्या काल में अत्यंत स्वर्णिम और सुंदर दिखाई दे रहा था। यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ थी। संध्या काल में यह भीड़ इसलिए भी बढ़ जाती है कि देश दुनिया से आए श्रद्धालु यहां सरयू घाट में मां सरयू की महाआरती का दर्शन करना चाहते हैं।

अयोध्या में विभिन्न परिवर्तनों की साक्षी मां सरयू भारतवंशियों के लिए सदैव से पूजनीय रही है।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ ने यहां घाटों का व्यवस्थित निर्माण कराने के साथ आसपास के क्षेत्र को सुसज्जित करते हुए जिस तरह से देव दिवाली, दीपावली, देवउठनी एकादशी तथा अन्य प्रमुख पर्वों पर सरयू तट पर दीपदान की परंपरा को बढ़ाया है उससे सरयू तट के प्रति स्वभाविक आकर्षण बढ़ा है। यहां पर सरयू तट में स्वच्छता का विशेष ध्यान भी रखा जा रहा है।

मां सरयू की आरती में कुछ विलंब था इसका फायदा उठाते हुए हमने वहां नौका विहार करने का निर्णय लिया तथा एक नाविक के नाव में बैठकर हमने लगभग आधे घंटे तक नौका विहार का आनंद लिया यहां नावें मोटर से संचालित होती है। अन्य नदियों की अपेक्षा सरयू का प्रवाह कुछ ज्यादा ही तेज है इसलिए सुरक्षा का विशेष प्रबंध रखा जाता है। नाव वाले ने हमें लाइफ जैकेट पहनने को कहा। लाइफ जैकेट पहने हम काफी देर तक नौका विहार करते हुए नदी के भीतर से सरयू के घाटों एवं अयोध्या के संध्याकालीन दृश्य का आनंद लेते रहे।

नाविक ने हमें बताया कि आरती का समय हो चुका है और उसने हमें राम की पैड़ी में ले जाकर उतार दिया। नाविक को उतराई देने के बाद हम राम की पैड़ी में सीढ़ियों पर बैठ गए। पूरा घाट श्रद्धालुओं से भर गया था। इस बीच निरुपमा एवं मैंकला ने दीपदान किया। कुछ देर में मां सरयू की महा आरती प्रारंभ हुई। घंटा, घड़ियाल की आवाज तथा दीपको की थाल से सरयू तट का नजारा देखने योग्य रहता है। इस नजारे को देखने के लिए आप भी आइए ना कभी अयोध्या ,,,,।

लगभग 8 बजे तक हम सरयू तट के घाट पर बैठे आध्यात्मिक आनंद उठाते रहे। इस बीच हमने कुछ फोटोग्राफी करने के साथ वहां मसाला चाय का भी लुफ्त उठाया तथा लगभग 9:00 बजे घूमते हुए हम वापस अशर्फी भवन पहुंच गए।

लखन सिया रामचंद्र की जय।??

पवनसुत हनुमान की जय। ??

सरयू महारानी की जय।??

 

 क्रमशः ??

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