मध्य प्रदेश

घरेलू हिंसा के लंबित प्रकरणों को कम करने में मीडिएशन और काउंसिलिंग की भूमिका महत्वपूर्ण : प्रो. वाजपेयी

“जीवा वार्षिक कार्यशाला” का समापन, विशेषज्ञों ने मीडिएशन एवं काउंसिलिंग की महत्ता पर डाला प्रकाश

भोपाल। द प्रैकेडमिक एक्शन रिसर्च इनिशिएटिव फॉर मल्टीडिसिप्लिनरी एप्रोच लैब (परिमल) और जस्टिस इंक्लूशन एंड विक्टिम एक्सेस (जीवा) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “जीवा कार्यशाला” का समापन हो गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भोपाल के पुलिस कमीश्नर हरिनारायणचारी मिश्र ने की। इस अवसर पर प्रमुख रूप से एडीजी (ट्रेनिंग) अनुराधा शंकर, पूर्व डीजीपी ऋषि शुक्ला एवं नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के प्रोफेसर जीएस वाजपेयी उपस्थित थे। कार्यशाला के तीसरे दिन घरेलू हिंसा के कानूनी प्रावधानों में मीडिएशन और काउंसिलिंग की भूमिका पर मंथन किया गया। इसमें नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली के प्रोफेसर जीएस वाजपेयी ने कहा कि माननीय न्यायालयों में लंबित प्रकरणों को कम करने में मीडिएशन औेर काउंसिलिंग की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि कानून का अंतिम का उद्देश्य है समाज में संतोष बना रहे। वहीं अपने वक्तव्य में आईजी (एडमिनिस्ट्रेशन) दीपिका सूरी ने कहा कि समाज के हित के लिए सबसे जरूरी ये है कि महिलाएं पुलिस विभाग में सेवा देने के लिए प्रेरित हों।

पुलिस आयुक्त श्री मिश्र ने कहा कि इस कार्यशाला में विशेषज्ञों और अधिकारियों ने संपूर्ण दृष्टिकोण को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया। तकनीक के माध्यम से महिला अपराधों को रोकने में बहुत मदद मिली है। वहीं एडीजी (ट्रेनिंग) अनुराधा शंकर ने कहा कि इस मंच पर अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने भी अपने शोध प्रस्तुत किए। जिसमें सबूतों के आधार पर उचित विवेचना किए जाने की महत्वपूर्ण जानकारी साझा की गई। कार्यशाला के तीसरे दिन विशेषज्ञों ने “इनगेदरिंग द पुलिस,ऑलटरनेटिव डिस्प्यूट रेसोल्यूशन एंड मेडिएशन: सिविल सोसायटी एंड इंटराजेंसी कॉ-ऑर्डिनेशन इन विक्टिम जस्टिस ” थीम के अंतर्गत अपने विचार व्यक्त किए। पुलिस मुख्यालय स्थित पुलिस ऑफिसर्स मेस के पारिजात हॉल में आयोजित इस कार्यशाला का संचालन परिमल के सचिव एवं डीसीपी डॉ. विनीत कपूर ने किया।

विशेषज्ञों ने रखे विचार

मीडिएशन और  काउंसिलिंग में न्याय की प्रक्रिया का रखें ध्यान : कार्यशाला में  “मीडिएशन और  काउंसिलिंग” विषय  पर चर्चा  की गई जिसमें विशेषज्ञाें ने बताया कि काउंसिलिंग के दौरान सेटल कराना और न्याय की प्रक्रिया का ध्यान रखना होगा। एआईजी डॉ.वीरेंद्र मिश्रा ने बताया कि थाना प्रभारी ही सबसे पहला मीडिएडर की भूमिका निभाता है। उन्होंने बताया महिला अपराधों के साथ ही ट्रांसजेंडरर्स पर भी बात करने की जरूरत है। उनके साथ समाज में समान व्यवहार नहीं किया जाता है। महिला एवं बाल अपराधों से संबंधित मामलों में  महिला हेल्प डेस्क और चाइल्ड लाइन बड़ी भूमिका निभाते हैं। काउंसिलिंग और मीडिएशन की प्रक्रिया में सभी पक्षों को ध्यान रखने की जरूरत है।

काउंसिलिंग को मीडिएशन तक ले जाने का दस्तावेजीकरण हो :  नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली के प्रोफेसर जीएस वाजपेयी ने बताया कि कानून में मीडिएशन की एक अलग व्यवस्था की गई। घरेलू हिंसा एक्ट के  मामले में  मीडिएशन शब्द का प्रयोग किया जाता है, जबिक काउंसिलिंग और मीडिएशन अलग-अलग होते हैं।  पुलिस को यह जानना जरूरी है कि घरेलू हिंसा के मामलों में काउंसिलिंग करते हुए मीडिएशन तक ले जाना है। काउंसिलिंग का दस्तावेजीकरण करने की जरूरत है, जिसमें पूरी जानकारी हाे । काउंसिलिंग की प्रोसिडिंग में दोहराव नहीं होना चाहिए। काेर्ट में पहुंचने के बाद काउंसिलिंग के दौरान तैयार किए गए सभी बिंदुओं को देखा जाता है। इसे प्रोफेशनल स्किल्स की तरह लें, मीडिएटर को ट्रेनिंग दें और उसका फॉलोअप करें। इसका संस्थागतकरण  होना चाहिए ।

विक्टिम पर थोपा नहीं जाए मीडिएशन : नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट युनिवर्सिटी भोपाल के प्रो. नचिकेता ने कहा कि प्रदेश में  छह नए काउंसिलिंग और मीडिएशन सेंटर खुले हैं। इस प्रक्रिया की प्रभावशीलता बढ़ती जा रही है। विक्टिम के साथ काउंसिलिंग और मीडिएशन करें तो सही पद्धति का ध्यान रखें। मीडिएशन में थ्योरिटीकली जो कमियां हैं जो न्याय के लिए उचित नहीं है। कोर्ट में भी मीडिएशन होता है तो उसमें न्याय के पहलु पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। मीडिएशन लिखित किया जाए,इसे हम विक्टिम पर थोप नहीं सकते। क्योंकि ये सही नहीं है, क्योंकि हमें एक परिवार का टूटने  से बचाना भी है।

महिलाओं को डिसीजन मेकिंग बनाना होगा : महिला एवं बाल विकास विभाग की संयुक्त संचालक, नकी जहां कुरैशी ने बताया कि बेटी बचाओ अभियान, लाडली लक्ष्मी योजना जैसी कई योजनाएं हैं। जिनके  माध्यम से बालिकाओं के विकास की बात करते हैं। हम गर्भवती महिला की काउंसलिंग करते हैं, लेकिन अभी तक  घर हो या बाहर डिसीजन मेकिंग का अधिकार नहीं महिलाओं को नहीं मिल पाया है । पॉलिसी में सुधार की जरूरत है। इसमें पुलिस, स्वास्थ्य विभाग, सामाजिक संस्थाओं के साथ सिविल सोसायटी का समन्वय जरूरी है। वन स्टॉप सेंटर इसका एक अच्छा उदाहरण है।

महिलाओं के साथ सभी वर्गोें की हो काउंसिलिंग : महिला शाखा में एआईजी शालिनी दीक्षित ने कहा कि महिला संबंधी कानूनी प्रावधानों में सुधार की जरूरत है।काउंसिलिंग के दौरान महिलाएं केवल परिवार में हो रहे विवाद के समाधान पर जोर देती हैं। जिससे उनके परिवार के सदस्यों को परेशानी न हो और घर टूटने से बच सके। इसके लिए महिलाओं के साथ पुरूष वर्ग की भी  काउंसिलिंग पर जोर देने की जरूरत है।

पुलिस में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण : महिला शोधार्थियों और पुलिस अधिकारियों ने “इनगेदरिंग द पुलिस- इनक्रीज ऑफ फीमेल प्रजेंस इन लॉ एनफोर्समेंट” विषय पर विचार व्यक्त किए। इसमें पैनलिस्ट के रूप में आईजी (एडमिनिस्ट्रेशन) सुश्री दीपिका सूरी, पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय की एसपी हितिका वासल, सीनियर पुलिस रिफॉर्म रिसर्चर तस्नीम रविंद्र देव और देविका प्रसाद उपस्थित थीं। मॉडरेटर के रूप में डीएसपी (क्राइम) निमिषा पांडे रहीं।

समाज की अवधारणा को बदलने की आवश्यकता : आईजी (एडमिनिस्ट्रेशन) दीपिका सूरी ने कहा कि हमें समाज की अवधारणा को बदलना होगा। महिलाएं पुलिस विभाग में अच्छा काम कर रही हैं। किसी ऑर्गनाइजेशन को सुदृढ़ बनाना है तो वहां महिलाओं की भागीदारी जरूरी है। पुलिस में महिलाओं के लिए कोटा होना और उन्हें इस सेवा में सम्मिलित करना कोई उपकार नहीं है बल्कि यह समाज के लिए अति आवश्यक है।  इस अवधारणा को भी बदलने की आवश्यकता है कि महिलाएं, पुलिस विभाग में काम नहीं करतीं। महिला पुलिस की अपनी चुनौतियां हैं। महिला संबंधी अपराधों में महिला पुलिस संवेदनशीलता से उन्हें न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। महिला अपराध में सभी महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, पुरूष पुलिस अधिकारी कर्मचारी इसमें ज्यादा भागीदारी नहीं निभा पाते हैं। ट्रेनिंग के दौरान यह सब सीखना होगा। यह गर्व का विषय है कि मध्यप्रदेश पुलिस में महिलाएं प्रमुख भूमिका निभा रही हैं।

पुलिस के प्रति बढ़ेगा आमजन का विश्वास : एसपी हितिका वसानी ने कहा कि पुलिस के प्रति आमजन का विश्वास तभी मजबूत हाेगा जब महिलाएं पुलिस में अधिक संख्या में शामिल होंगी। उन्होंने बताया कि कई बार पुलिस में शामिल होने के बाद भी परिवार का दबाव प्रशिक्षु महिला पुलिस पर होता है। इस अवधारणा को बदलने की आवश्यकता है कि बेटी के पुलिस में शामिल होने के बाद घरेलू कार्य या सामाजिक कार्यों में बाधा आएगी। उन्होंने मध्यप्रदेश पुलिस के नवाचार का उल्लेख करते हुए कहा कि इंदौर के प्रशिक्षण केंद्र में एडीजी ट्रेनिंग अनुराधा शंकर के प्रयासों से किलकारी पालनाघर बनाया गया है, जिसमें उनके बच्चे की देखभाल केयर टेकर द्वारा की जाती है और मां पुलिस की ट्रेनिंग ले रही हैं। वहीं परिवार के लोगों को बुलाकर उनकी अवधारणा को बदलने का प्रयास भी किया जा रहा है।

नीति निर्धारण में हो महिलाएं : वहीं तस्नीम देव ने कहा कि महिला पुलिस को केवल जूनियर पदों पर नहीं बल्कि नीति निर्धारण में शामिल किया जाना चाहिए। पुलिस में महिलाओं की संख्या में वृद्धि से ना केवल पुलिस मजबूत होगी बल्कि प्रभावी होगी और त्वरित कार्रवाई करने में सक्षम भी होगी। उन्होंने कहा कि पुलिस और जनभागीदारी से अपराधों के नियंत्रण में काफी सफलता मिल सकती है।

समाज को महिला पुलिस की आवश्यकता : सर्वप्रथम देविका प्रसाद ने शोध प्रस्तुत करते हुए कहा कि वर्ष 2014 में उनके द्वारा शोध में यह बात सामने आई कि साउथ एशिया के देशों में महिलाएं पुलिस विभाग में जूनियर पदों पर कार्यरत थीं। पदोन्नति ना मिलने से वे बड़े पदों पर भी नहीं थीं। वर्तमान में यह परिदृश्य बदला है। उन्होंने कहा कि हर रैंक पर महिला पुलिस और उनकी चुनौतियों को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए। यह हर्ष का विषय है कि मध्यप्रदेश में महिलाएं, पुलिस विभाग में उच्च पदों पर हैं।

पुलिस के साथ जनभागीदारी भी जरूरी : विशेषज्ञों ने “जेंडर बेस्ड वायलेंस, इंक्लूशन, लॉ इंफोर्समेंट एंड गेप्स इन सिविल सोसायटी पार्टनरशिप-पर्सपेक्टिव ऑफ डिफरेंट स्टेक होल्डर” विषय पर विचार व्यक्त किए। इसमें पैनलिस्ट के रूप में एक संगठन की समाजसेवी सीमा कुरु, महिला एवं बाल विकास विभाग के जॉइंट डायरेक्टर डॉ. सुरेश ताेमर, सीडब्ल्यूसी की चेयरपर्सन जागृति सिंह, आईपीएस प्रदीप शर्मा, ह्युमन राइट्स के एचओडी प्रो यू. पी. सिंह, चाइल्ड लाइन की डायरेक्टर अर्चना सहाय उपस्थित थे। मॉडरेटर पुलिस मुख्यालय में एआईजी डॉ. वीरेंद्र मिश्रा रहे।

सामाजिक कार्यकर्ताओं का बढ़ा विश्वास : सीमा कुरु ने कहा कि एक्टिविस्ट सिस्टम के साथ भी काम करते हैं और सवाल भी करते हैं। यह दोनों के हित में होता है। विचारों का आदान-प्रदान होना जरूरी है। यदि हम किसी ऑर्गनाइजेशन में महिलाओं काे कार्य करने का अवसर प्रदान करते हैं तो यह समाज निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान होगा। वर्तमान में महिला ऊर्जा हेल्प डेस्क सार्थक साबित हो रहे हैं। महिला पुलिस कर्मियों को थानों का वातावरण जानने के लिए वहां पदस्थ होना जरूरी है। वहीं महिला पुलिसकर्मी के साथ सही व्यवहार आवश्यक है। ऊर्जा महिला हेल्प डेस्क के कारण सामाजिक कार्यकर्ताओं का विश्वास भी बढ़ा है। साथ ही शक्ति समिति के कार्यों को भी समाज के सामने लाने की आवश्यकता है।

सरकार ही नहीं, समाज की भी जिम्मेदारी : डॉ. सुरेश तोमर ने कहा कि समस्या के पीछे की सच्चाई क्या है इसको समझने की जरूरत है। यह कड़वी सच्चाई है कि हमारे देश में कई स्थानों पर आज में लिंगानुपात में अंतर है। इसके प्रति व्यापक जागरूकता की आवश्यकता है। यह केवल सरकार की ही नहीं बल्कि समाज की जिम्मेदारी है। पुरुषों के साथ श्रेष्ठता के भाव की समस्या रहती है। इसे बदलने की आवश्यकता है। लिंगानुपात में अंतर को पाटना है तो पुरुषों को भी आगे आना होगा।

समाज में नैतिकता का हो रहा पतन : श्रीमती जागृति सिंह ने बताया कि वर्तमान समय में नैतिकता का पतन हो रहा है। उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी माता-पिता दोनों की होती है। मां के गुजर जाने के बाद अक्सर उनकी जिम्मेदारी कोई नहीं निभाता। ऐसे में बच्चे अनाथ हो जाते हैं। बच्चों को पालने में मानवता की कमी महसूस की जा रही है। इसी तरह पति-पत्नी के अलग होने पर वे बच्चों को छोड़कर चले जाते हैं। यह आवश्यक है कि हम अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें।

पीड़ित के साथ सहानुभूति जरूरी : एसपी प्रदीप शर्मा ने बताया कि पुलिस के संपर्क में आने वाले और ना आने वालों के विचार अलग-अलग हो सकते हैं। थाने में पीड़ितों के प्रति सहानुभूति होनी चाहिए। यह भी आवश्यक है कि आमजन, पुलिस की कार्यप्रणाली को समझें, उनकी समस्याओं को समझें। पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों का मार्गदर्शन से काफी मदद मिलती है। नगर रक्षा समिति में जो लोग शामिल होते हैं उनके माध्यम से सिविल सोसायटी के बीच में पुलिस की कार्यप्रणाली को जनता तक पहुंचाया जा सकता है।

कार्यप्रणाली में सुधार की आवश्यकता : प्रो. यू. पी. सिंह ने कहा कि हम कई मामलों को मानव अधिकार के नजरिए से नहीं देखते, यह जरूरी है। अपराधों की प्रवृत्ति को हमें भौगोलिक और सांस्कृतिक आधार पर देखने की आवश्यकता है। कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं, जिसमें सबूत, गवाह और पीड़ित के संबंध में सही जानकारी नहीं दी गई।  कई बार पीड़ितों के अस्पताल पहुंचने पर सबूत मिट जाते हैं। प्रक्रिया में देरी की वजह से पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता। इसके लिए पुलिस के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली में सुधार की आवश्यकता है।

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