धर्म

जगन्नाथ संस्कृति का उद्भव मध्यभारत की देन- पुरंदर मिश्रा

पुरी। पुरी स्थित टाऊन हॉल में आयोजित जगन्नाथ महाप्रभु के संस्कृति को लेकर आध्यात्म चिंतन और चेतना शिविर में देश भर के 276 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। जिसमें अतिथि प्रवक्ता के रूप में रायपुर से पुरंदर मिश्रा शामिल हुए। कार्यक्रम में भारत भर के प्रतिनिधियों के अलावा जापान, इग्लैंड, केन्या, नीदरलैंड, अमरिका सहित 25 देशों के प्रतिनिधि भी शामिल थे। चार से छह जनवरी तक आयोजित इस कार्यक्रम में पहले दिन शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद ने महाप्रभु की पूजा अर्चना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम के पहले दिन यूएस के डॉ. पंचानंद सतपथी,  नीदरलैंड के संजीव बारी, कनाडा के सुनंदा मिश्रा, पुरी के डॉ नरेश दास सहित सच्चिदानंद दास, ब्रम्हचारी ऋषिकेश और मातरू प्रसाद मिश्रा ने जगन्नाथ संस्कृति के संदर्भ में वर्णन किया। जगन्नाथ चेतना व चिंतन के इस कार्यक्रम में सत्य प्रज्ञानंद सरस्वती, यूएस के श्रीमती कुकु दास, जापान के केके दास ने संबोधित किया।

इस अवसर पर क्रेडा के पू्र्व अध्यक्ष व इस कार्यक्रम में बतौर प्रवक्ता शामिल पुरंदर मिश्रा ने जगन्नाथ संस्कृति का उद्भव भध्यभारत की देन है। इस संदर्भ में लोकमान्यता है कि पूर्व में छत्तीसगढ़ के देवभोग का चावल भगवान जगन्नाथ के भोग के लिए जाता था। इसलिए इसका नाम देवभोग पड़ा। छत्तीसगढ़ की जीवनरेखा महानदी को माना जाता है। यह जगन्नाथ संस्कृति से मिलता जुलता है। शिवरीनारायण में भी पूजा अर्चना जगन्नाथ संस्कृति के हिसाब से की जाती है।

महानदी तट पर जगन्नाथ महाप्रभु की पूजा नील माधव के रूप में होता था। इसके बाद जगन्नाथ प्रभु की पूजा पुरी में हो रही है। उन्होने यह भी कहा कि जगन्नाथ संस्कृति का उद्भव छत्तीसगढ़ है क्योंकि पूर्व में छत्तीसगढ़ कौशल प्रदेश का अंग हुआ करता था जिसकी राजधानी सिरपुर थी। उन्होंने यह भी बताया कि जगन्नाथ संस्कृति से प्रभु ईसा मशीह और सिख धर्म के गुरु गोविंद सिंह को जोड़कर कुछ यहां दंत कथाएं हैं। इसका प्रमाण महासमुंद जिले के गढ़फुलझर गुरुद्वारा में उपल्ब्ध है।

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