मध्य प्रदेश

सूचना आयुक्त के फैसले ने मध्य प्रदेश में पुलिस थानों की परेशानी बढ़ाई, अब आरटीआई के आवेदन पर पुलिस को 48 घंटे के अंदर उपलब्ध करानी होगी एफआईआर की कॉपी …

देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ और जनता को सूचना का अधिकार देने के लिए लाए गए आरटीआई कानून को 17 साल पूरे हो गए. इसके आने के बाद ही जनता के हाथ में बड़ा हथियार आ गया, लेकिन कई मामलों में जनता को परेशान होना पड़ा, उन्हें कानूनी पेंच बताकर सूचना नहीं दी गई. ऐसे में आरटीआई डे पर मध्य प्रदेश सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने राहत देते हुए बड़ा फैसला दिया है. सूचना आयुक्त के निर्देश के अनुसार, अब हर थाने को आरटीआई आवेदन आने पर 48 घंटे के अंदर एफआईआर की कापी देनी होगी.

दरअसल, एफआईआर की कॉपी को लेकर पुलिस पर अक्सर यह आरोप लगता है कि वह एफआईआर  की कॉपी आसानी से उपलब्ध नहीं कराती. राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अब आम आदमी से जुड़ी इस शिकायत को दूर करने के लिए एफआईआर की कॉपी को आरटीआई एक्ट के दायरे मे लाते हुए सभी थानों में एफआईआर की कॉपी 48 घंटे के भीतर उपलब्ध कराने के लिए निर्देश जारी किए हैं.

सूचना आयुक्त ने चेतावनी देते हुए कहा कि जानबूझकर एफआईआर  की जानकारी को रोकने वाले दोषी अधिकारी के विरुद्ध 25000 रुपये जुर्माना या अनुशासनिक कार्रवाई आयोग द्वारा की जाएगी. इस आदेश में संवेदनशील अपराधिक मामलों और वो एफआईआर जिसमे जांच प्रभावित हो सकती है को आरटीआई के दायरे से बाहर रखा गया है. हालांकि शिकायत आने पर पुलिस को ये सिद्ध करना होगा की एफआईआर की कॉपी देने से उनकी जांच प्रभावित होगी.

कई मामलों में सूचना मिलने को लेकर 48 घंटे का प्रावधान है. ये केवल उन मामलो में लागू होता है, जब व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता का सवाल आता है. जहां नागरिकों के जीवन या स्वतंत्रता खतरे में हो और जहां 48 घंटे में जानकारी देने से व्यक्ति के अधिकारों के हनन होने पर रोक लगती हो, वहां यह अधिकारियों का कर्तव्य है कि 48 घंटे के अंदर जानकारी संबंधित व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाए.

सूचना का अधिकार अधिनियम में 48 घंटे में जानकारी देने के नियम में प्रथम अपील और द्वितीय अपील कितने समय बाद की जा सकती है, इसका उल्लेख नहीं है. इसे दूर करते हुए राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने स्पष्ट किया की 48 घंटे में अगर जानकारी नहीं मिलती है तो 48 घंटे के बाद प्रथम अपील और उसके 48 घंटे के बाद द्वितीय अपील की जा सकेगी और ये न्यायिक मापदंड और सूचना के अधिकार अधिनियम की मूल भावना के अनुरूप होगा.

सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने एफआईआर को लेकर आदेश जारी करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 एवं अनुच्छेद 19 का भी सहारा लिया. अनुच्छेद की व्याख्या करते हुए सिंह ने बताया कि जिसके विरूद्ध एफआईआर दर्ज की गई है, उसे भी यह जानने का अधिकार है कि किन धाराओं में मामला दर्ज किया गया है. वहीं एफआईआर, सीआरपीसी की धारा 154 के तहत तैयार एक सार्वजनिक दस्तावेज है और यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 74  के तहत भी सार्वजनिक दस्तावेज है. इस कारण इसे आरटीआई में दिया जाना चाहिए.

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