लेखक की कलम से
इश्क करना सिखा दे…
कोई मुझे भी इश्क करना सीखा दे
इश्क में इन्तज़ार करना सीखा दे।
कैसे भरते रहते हैं आँहे आशिक
मुझे भी आँहे भरना सीखा दे।
सुना है लोग इश्क में जान भी दे देते हैं
मुझे भी कोई इश्क में मरना सीखा दे।
सुना है कभी इश्क में मिलता है दग़ा भी
मुझे भी वफ़ा- जफा में फर्क करना सीखा दे।
सुना है दिल टूटने पर होती है तकलीफ़ बड़ी
“प्रेम” को भी कोई तकलीफ़ से गुज़रना सीखा दे।
©प्रेम बजाज, यमुनानगर