मध्य प्रदेश

इंदौर में बोले स्वामी अवधेशानंद गिरि : आज पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति फैल रही है ….

इंदौर। 1970 के दशक में एक शब्द आया ‘मूड खराब है”। उसके बाद ‘बहुत बिजी हैं” और फिर ‘बड़ा स्ट्रेस है” यह शब्द आए। पर यह शब्द तो हमारे देश के हैं ही नहीं, क्योंकि हम तो अमृत की संतान हैं। तनाव हमारे शब्दकोष में नहीं है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि हम डराएंगे नहीं पर डरेंगे भी नहीं। वास्तव में यह अवधारणा इसलिए यथार्थ है, क्योंकि हम कालजयी हैं, मृत्युंजय हैं। हम उस सावित्री की संतान हैं, जो यमराज से अपने पति के प्राण ले आई थी। हम नचिकेता के देश के हैं।

यह बात महामंडलेश्वर जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने इंदौर के अभय प्रशाल में कही। वे यहां प्रभु प्रेमी संघ द्वारा ‘चलें दिव्यक जीवन की ओर…” विषय पर आयोजित व्याख्यान माला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंईने कहा कि यह भारत की भूमि है, जो परमात्मा का बेटा नहीं पैदा करती, बल्कि परमात्मा ही पैदा करती है। यही वह धरा है, जिसने उस वक्त दुनिया को दशमलव, प्रतिशत, शून्य और आत्मज्ञान का बोध करा दिया था, जब पाश्चात्य में मानव था ही नहीं। हमारे पास यह शक्ति इसलिए है, क्योंकि हमने हर प्राणी, हर वस्तु में परमात्मा को देखा और खुद में उनकी दिव्यता को महसूस किया। जब खुद के भीतर के राम को आप पा लेंगे तो खोने का भय समाप्त हो जाएगा।

इस दौरान स्वाजमी अवधेशानंद ने आत्मबोध, ईश्वरीय सत्ता, माता-पिता और गुरु महत्व, भक्तिरस, योग, पुरुषार्थ, देश और धर्म को केंद्र में रखते हुए कहा कि शास्त्र हमें बोध कराते हैं कि हममें दिव्यता है और जन्म से ही हम सनातन का अंश हैं। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार देश का स्वरूप बदल सकता है, लेकिन देह में निहित दिव्यता कभी नहीं बदल सकती। और जब व्यक्ति उस दिव्यता की ओर बढ़ता है तो उसे ऐश्वर्य, आनंद, माधुर्य, समाधान, निर्दोषता सब कुछ मिलता है। वास्तव में ईश्वर का अर्थ है, जो सर्वत्र विद्यमान है और सबसे बड़ा रस ईश्वर भक्ति का रस है। दिव्यता हमारा स्वभाव भी है और निजता भी। दिव्यता की ओर जाने का अर्थ अपनी मूल प्रवृत्ति और अस्तित्व की ओर चलना है।

स्वामी जी ने कहा कि सामर्थ्यावान और शक्तिशाली बनें। परिस्थितियों से विचलित न हों। हमारी सोच विज्ञानी है और यही वजह है कि आज पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति बगैर षड्यंत्र, रणनीति, कूटनीति, राजनीति, भय, दबाव के फैल रही है। युवा यदि मर्यादित और संतुलित रहेगा तो परिणाम अच्छे ही होंगे। जितनी ऊर्जा परमात्मा में है, उतनी ही हममें भी है। संकल्प यदि शुभ हो और दिशा उचित हो तो दशा भी ठीक ही होगी। आपका मार्ग वेद निर्देशित, शास्त्र सम्मत, माता-पिता द्वारा निर्देशित और गुरू द्वारा उपदेशित होगा तो सफलता निश्चित ही मिलेगी।

पूर्व में व्याख्यान माला का शुभारंभ भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, प्रभु प्रेमी संघ के अध्यक्ष सुशील बेरीवाला, राजसिंह गौड़ व राधेश्याम श्रोत्रिय ने दीप प्रज्वलित कर किया। आयोजन में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, संसद सदस्यय शंकर लालवानी, जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, विधायक मालिनी गौड़, रमेश मेंदोला, समाजसेवी पुरुषोत्तम अग्रवाल सहित बड़ी संख्या में शहर के धार्मिक-सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि व पदाधिकारी उपस्थित थे।

स्वाकमी अवधेशानंद ने उपस्थितजनों को यह दिए मंत्र

  1. –   अपने शास्त्र में श्रृद्धा रखना, पर दूसरे शास्त्र की निंदा नहीं करना
  2. –    जीवन में सबसे बड़ा रस ईश्वर भक्ति का रस है, शेष क्षणभंगूर
  3. –   गीता (शास्त्र) बिना मति नहीं और गाय बिना गति नहीं
  4. –   माता-पिता की सत्ता समझ जाएंगे तो आचार्य और गुरु को भी जान पाएंगे
  5. –   जब कोई अपना अस्तित्व जान जाता है तो उसे कोई दुविधा या पीड़ा नहीं होती
  6. –   प्रारब्ध का प्रभाव सदैव नहीं रहता, यदि सदैव कुछ रहता है तो वह है स्वभाव
  7. –   मन से दिव्यता की ओर जाने का प्रयास करें
  8. –   श्रृद्धा जागेगी तो निश्चत ही चैतन्यता आएगी
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