मध्य प्रदेश

एमपी में बसा ऐसा ‘आदिवासी गांव’, जहां एक साथ एक ही स्थान पर दिखाई दे रही 7 जनजातियों की संस्कृति की झलक

इंदौर में होने वाले प्रवासी भारतीय सम्मेलन और ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी करेंगे खजुराहो में बसे आदिवर्त गांव का वर्चुअल शुभारंभ

भोपाल (कैलाश गौर)। यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो में ऐसा आदिवासी गांव बसाया गया है, जहां 7 जनजातियों की संस्कृति झलकेगी। खासियत यह है कि यहां सातों जनजातियों के रहवास और उनकी कला संस्कृति को उसी जनजाति के कलाकारों ने तैयार किया है। यह गांव लगभग पूरी तरह तैयार हो चुका है। जनवरी 2023 में इंदौर में होने वाले प्रवासी भारतीय सम्मेलन और ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसका वर्चुअल शुभारंभ करेंगे।

अब खजुराहो आने वाले देशी-विदेशी सैलानी इस आदिवासी गांव के जरिये प्रदेश के आदिवासियों की संस्कृति, सभ्यता और जीवनशैली से परिचित होंगे। आदिवासियों ने इस गांव में अपने पारंपरिक घरों को खुद लीप-पोतकर तैयार किया है। यहां अभी मध्यप्रदेश की 7 जनजातियों को रखा गया है। शीघ्र ही राज्य के बुंदेलखंड, बघेलखंड, मालवा, निमाड़ एवं चंबल के लोक समुदायों की संस्कृति एवं विशिष्टता को भी यहां प्रदर्शित किया जाएगा।

जनजाति लोककला राज्य संग्रहालय खजुराहो के प्रभारी अशोक मिश्रा ने बताया कि सीएम शिवराज सिंह चौहान की घोषणा के अनुसार यह गांव बसाया है। ऐसे में खजुराहो आने वाले पर्यटक एक ही स्थान पर मप्र की जनजातियों की संस्कृति एवं उनके रहन-सहन से परिचित हो सकेंगे। मध्यप्रदेश की कोल, भील, गौंड़, बैगा, भारिया, कोरकू एवं सहारिया जनजाति के परिवार इस बस्ती में अपनी प्राचीन जीवन शैली के साथ रहेंगे। इस बस्ती में एक चौपरा भी तैयार किया जा रहा है, जिसमें यह आदिवासी परिवार स्नान आदि करेंगे। खजुराहो आने वाले पर्यटक, जिन्होंने केवल किताबों या इतिहास में तो पढ़ा है, पर देखा नहीं। उन्हें यहां हम अपनी प्राचीन सभ्यता, जिसमें जनजातियों के रहन सहन, खान पान, वेशभूषा, आभूषण एवं उनकी कला कृतियों को साक्षात मूल स्वरूप में दिखा सकेंगे।

आदिवर्त रखा गया है गांव का नाम

4 एकड़ क्षेत्र में बसाए गए इस गांव का नाम आदिवर्त रखा गया है। इसमें भील, गोंड, भारिया, कोल, सहरिया, बैगा और कोरकू जनजाति के रहवास बनाए जा रहे हैं। यहां इनकी पूरी संस्कृति है। उपकरण से लेकर वाद्य यंत्र तक रखा जा रहा है। इसका निर्माण एक सितंबर 2021 से शुरू किया गया था। जनजातीय लोककला संग्रहालय के क्यूरेटर अशोक मिश्रा बताते हैं, करीब 7 करोड़ की लागत से निर्माण कार्य 80 प्रतिशत से ज्यादा पूरा हो चुका है। यहां एक प्रदर्शनी दीर्घा भी रहेगी, जहां प्रत्येक महीने में 15 दिन जनजाति कलाकार यहां अपनी कला का प्रदर्शन कर पाएंगे। वे सीधे ग्राहक को अपने उत्पाद भी बेच पाएंगे।

आदिवर्त गांव में होगी मां नर्मदा की जीवंत कथा

आदिवर्त जनजातीय कला राज्य संग्रहालय के प्रबंधक भास्कर पाठक ने बताया, प्रदेश में 7 जनजातियों में पांच जनजाति नर्मदा नदी के किनारे बसती हैं। पानी से इनका गहरा नाता है। ऐसे में यहां दीवारों पर मां नर्मदा की जीवंत कथा पेंटिंग के माध्यम से उकेरी जाएगी। संग्रहालय में एक और बड़ा आर्कषण जोड़ा गया है। गोंड जनजाति से आने वाली पद्मश्री दुर्गाबाई व्योम व उनकी 15 सदस्यीय टीम ने यहां 120 फीट लंबाई व 12 फीट चौड़ाई की विशाल वुडन पेंटिंग तैयार की है। नर्मदा उद्भव कथा को दर्शाती ये गोंड चित्रांकन की पेंटिंग संग्रहालय की दर्शक दीर्धा में लगाई गई है। इस पेंटिंग के जरिए नर्मदा उत्पत्ति, उसके तटों, किनारों पर बसा जनजीवन एवं धार्मिक महत्व के स्थानों का चित्रण दुर्गाबाई ने अपनी शैली में की है। वहीं, भील जनजाति की पद्मश्री भूरी बाई खुद 24 पेंटिंग के माध्यम से अपनी जीवन कहानी दर्शाएंगी। जबकि, राष्ट्रीय तुलसी सम्मान से सम्मानित तिलकराम नायलोन की रस्सी से शाजा का वृक्ष बना रहे हैं। जनजातियों में यह वृक्ष बरगद और पीपल की तरह पूज्यनीय माना जाता है।

साहित्यकार व पर्यावरण विद पद्मश्री बाबूलाल दाहिया भी कर रहे देखरेख

बघेलखंड के पारंपरिक आवास के लिए सतना जिले के वरिष्ठ साहित्यकार पर्यावरण विद पद्मश्री बाबूलाल दाहिया का सहयोग लिया जा रहा है। दहिया द्वारा बघेलखंड की पहचान पुरानी बखरी का कंप्यूटर थ्रीडी ढांचा मॉडल बनवाया गया है। इसके साथ ही स्थानीय जानकार श्रमिकों से भी वे अपनी देखरेख में निर्माण करवा रहे हैं।

काष्ट शिल्पियों ने तैयार किए विलुप्त हो रहे प्राचीन पारंपरिक उपकरण

खंडवा जिले से खजुराहो में बसने आए कोरकू जनजाति के काष्ट शिल्पियों ने खेत और गेहूं बोने वाला हल यहां आकर ही तैयार किया है। इसे कोरकू भाषा में गुल्लई कहा जाता है। इसके अलावा उन्होंने विलुप्त हो रहे एवं विलुप्त हो चुके कृषि कार्य में उपयोग होने वाले बैलगाड़ी, बखर सहित अन्य उपकरण भी तैयार किए हैं।

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