मध्य प्रदेश

प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को लेकर सियासत तेज, 15 नवंबर को जनजातीय सम्मेलन में पूर्व सीएम होंगे शामिल…

मध्यप्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को पाने के लिए सियासत तेज हो गई है। 15 नवंबर को भोपाल में जनजातीय महासम्मेलन का आयोजन किया जाना है। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शिरकत करेंगे। वहीं, कांग्रेस ने भी इसी दिन जबलपुर में जनजातीय सम्मेलन का ऐलान किया है। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ शामिल होंगे। इसे लेकर मंगलवार को पीसीसी में बैठक हुई।

पार्टी सूत्रों ने बताया कि जबलपुर में आदिवासी सम्मेलन कर कांग्रेस बीजेपी को अपनी ताकत बताने जा रही है। सम्मेलन में प्रदेश भर से आदिवासियों को आमंत्रित किया गया है। सम्मेलन की जिम्मेदारी पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोट को सौंपी गई है। इससे पहले, 18 सितंबर को जबलपुर में राजा शंकरशाह- रघुनाथ शाह के शहीदी दिवस पर बीजेपी के आयोजन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए थे। शाह के बाद अब मोदी के दौरे को भी आदिवासियों को 2023 के चुनाव के लिए लुभाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

वजह है कि राज्य में 43 समूहों वाले आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है, जो 230 में से 84 विधानसभा सीटों पर असर डालती हैं। मप्र में 2018 के विधानसभा चुनाव में BJP को आदिवासियों ने बड़ा नुकसान पहुंचाया था।

बता दें कि आदिवासियों पर सियासत विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान शुरू हुई थी। दरअसल, कमलनाथ ने राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश शुरू किया था। शिवराज सरकार के फिर से सत्ता में आने के बाद पिछले साल यानी 2020 को भी 9 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश था, लेकिन इस साल सार्वजनिक अवकाश की सूची से विश्व आदिवासी दिवस को हटा दिया गया था। कमलनाथ ने इसे मुद्दा बनाने में देर नहीं की थी। शिवराज ने ऐलान किया था कि 15 नवंबर को प्रदेश में शहीद बिरसा मुंडा की जंयती पर प्रदेश में बड़ा आयोजन किया जाएगा।

कांग्रेस ने निकाली थी आदिवासी अधिकार यात्रा

आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस-बीजेपी आमने-सामने आ गए हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उप चुनाव से पहले बड़वानी से आदिवासी अधिकार यात्रा निकाली थी, तो बीजेपी हमलावार हो गई। बीजेपी नेताओं ने इसे धोखा यात्रा करार दिया था और साेशल मीडिया पर कैंपेन चलाया, लेकिन कांग्रेस ने भी इसका जवाब देने में देर नहीं की। पीसीसी ने कमलनाथ सरकार में आदिवासियों के लिए किए गए कामों का वीडियो जारी कर दिया था।

दोनों पार्टी इसलिए झोंक रही ताकत

आदिवासी बहुल इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी। वहीं, 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है। वहीं, जिन सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारों की जीत और हार तय करते हैं। वहां सिर्फ बीजेपी को 16 सीटों पर ही जीत मिली है। 2013 की तुलना में 18 सीट कम है। अब सरकार आदिवासी जनाधार को वापस बीजेपी के पाले में लाने की कोशिश में जुटी है। जबकि कांग्रेस इस समुदाय को साधे रखने की जुगत में लगी है।

आदिवासी बाहुल्य सीटों पर समीकरण बदले

  1. 2003 विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी, जबकि 1998 में कांग्रेस का आदिवासी सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव था।
  2. 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
  3. 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी।
  4. 2018 के इलेक्शन में पांसा पलट गया। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। एक निर्दलीय के खाते में गई।
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