मध्य प्रदेश

कैलाश मानसरोवर और तिब्बत को धूर्त चीन से मुक्त कराने के लिए संगठन प्रतिबद्ध

संघ समर्थित भारत तिब्बत सहयोग मंच की मालवा प्रांत की दो दिवसीय बैठक संपन्न, उज्जैन में भी पदाधिकारियों ने ली कार्यकर्ताओं की बैठक, एक दिन पहले इंदौर में भी बैठक ली

उज्जैन। संघ समर्थित भारत तिब्बत सहयोग मंच की मालवा प्रांत की दो दिवसीय बैठक संपन्न हुई। ये उज्जैन में पहली कार्यकर्ता बैठक थी। बैठक की अध्यक्षता मध्य क्षेत्र संयोजक गिरिराज किशोर पोद्दार ने की, जो कि भाजपा से पूर्व विधायक भी रहे हैं। संगठन के कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए पोद्दार ने कहा कि उज्जैन महाकाल की नगरी है, जिसकी ऊर्जा पूरे संगठन को मिलेगी। पोद्दार ने कहा कि कैलाश मानसरोवर की मुक्ति अभियान के लिए महाकाल का दरबार सबसे उपयुक्त स्थान है।
बैठक में मालवा प्रांत संयोजक यशवर्धन सिंह ने कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए इसे ईश्वरीय कार्य बताया। सिंह ने कार्यकर्ताओं से समर्पण भाव से काम करने की बात दोहराई, ताकि इस पावन काम को रजत जयंती वर्ष में गति मिले। बैठक में संगठन में उज्जैन से जुड़े लव श्रीवास्तव, बंटी चौबे और नरसिंह नीमा, मोहनलाल राठौर प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। बैठक की व्यवस्था और कार्यकर्ताओं का संबोधन अशोक राठौर ने किया। संगठन की आगामी बैठक मार्च के आखरी सप्ताह में रखी जाएगी जिसमें प्रांत के बाकी दायित्व घोषित किए जाएंगे एवं समीक्षा बैठक भी रखी जाएगी।

क्या है भारत तिब्बत सहयोग मंच
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समर्थित प्रकल्प भारत तिब्बत सहयोग मंच (बीटीएसएम) संघ के वरिष्ठ राष्ट्रीय प्रचारक माननीय डॉ इंद्रेश कुमार जी के मार्गदर्शन में कार्य करता है। इस संस्था की स्थापना 5 मई 1999 को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे पूजनीय सरसंघचालक स्वर्गीय राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ji, 5वें पूजनीय सरसंघचालक स्वर्गीय के. सी. सुदर्शन जी एवं तिब्बती धर्म गुरु परम् पावन दलाई लामा जी के आशीर्वाद से संघ के वरिष्ठ प्रचारक माननीय इंद्रेश जी द्वारा की गई थी। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य धूर्त चीन से कैलाश मानसरोवर को मुक्त करवाना, जिससे हजारों सालों से हिंदुस्तानियों की आस्था जुड़ी हुईं हैं। साथ ही विश्व के सबसे शान्ति प्रिय देश तिब्बत की आजादी है l तिब्बत के आजाद होने से देश की सीमाओं को चीन के खतरे से मुक्त किया जा सके। तिब्बत के शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए ये संगठन काफी बड़ी भूमिका निभाता है। ज्ञात हो कि सात दशक पहले चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा करके 12 लाख तिब्बतियों की निर्मम हत्या कर दी थी। तभी से हिंदुस्तान और चीन की सीमाएं आमने सामने हुईं, वरना उससे पहले तक तिब्बत के कारण देश को चीन की तरफ से कोई खतरा नहीं था।

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