नई दिल्ली

मैं वेद पुराणों की गाथा, मैं भू का उन्नत सा माथा…..

नई दिल्ली। साहित्यिक संस्था काव्यप्रवाह अनुगूँज की ओर से एन के बी एम जी कालेज चन्दौसी में राजनीति विज्ञान विभाग प्रभारी व कवयित्री डॉ रीता के आशियाना स्थित आवास पर ‘ आजादी का अमृत महोत्सव ‘ के अन्तर्गत देशभक्ति को समर्पित  एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। कवि मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार एवं रचनाकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने की। मुख्य अतिथि चंदौसी से उपस्थित हुए वरिष्ठ रचनाकार श्री रमेश अधीर तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में अखिलेश वर्मा मंचासीन हुए।

कार्यक्रम का संचालन राजीव प्रखर ने किया। उपस्थित रचनाकारों  ने विभिन्न सामाजिक विषयों को अपनी रचनाओं के माध्यम से उठाया। अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति करते हुए युवा कवि दुष्यंत बाबा ने कहा – “सपने कागज पर उकेर कर खुद ही मिटाता हूँ। गर्मी, सर्दी, बर्षा के साथ गम भी सह जाता हूँ। भोजन के बाद सलाद में गालियां भी खाता हूँ। इतनी आसानी से कहाँ पुलिसकर्मी बन जाता हूँ।” कवयित्री डा. रीता सिंह की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार रही – “मैं वेद पुराणों की गाथा। मैं भू का उन्नत सा माथा। मैं गंगा सतलज की धारा, मैं जग की आँखों का तारा। मैं राम कृष्ण की धरती की, नित लिखता नयी इबारत हूँ ।

मैं भारत हूँ , मैं भारत हूँ ….।” राजीव प्रखर ने सुरक्षा के लिये सजग रहने वाले वीर सैनिकों को नमन करते हुए कहा – “निराशा ओढ़ कर कोई, न वीरों को लजा देना। नगाड़ा युद्ध का तुम भी, बढ़ा कर पग बजा देना। तुम्हें सौगन्ध माटी की, अगर मैं काम आ जाऊँ। बिना रोये प्रिये मुझको, तिरंगे से सजा देना।” प्रसिद्घ युवा गीतकार मयंक शर्मा ने गीत की सुरीली तान कुछ इस प्रकार छेड़ी  – “मन ले चल अपने गाँव हमें शहर हुआ बेगाना, दुख का क्या है दुख से अपना पहले का याराना।”

देश की जानी – मानी ग़ज़लकारा डॉ. अर्चना गुप्ता ने अपने भावों को अपनी ग़ज़ल से अभिव्यक्ति देते हुए कहा – “मुहब्बत करेगी असर धीरे धीरे। उठेगी झुकी सी नज़र धीरे धीरे। चलो साथ मेरे क़दम तुम मिलाकर,

लगेगा हसीं ये सफ़र धीरे धीरे।” ग़ज़ल  की इसी मिठास को  जहाँ अखिलेश वर्मा आगे ले जाते हुए बोले – “जो सोच रक्खे हैं सारे सवाल बदलेंगे। ये उम्र बदलेगी तेरे ख़याल बदलेंगे। उगलते ज़ह्र हैं इंसान का लबादा है, बरोज़ हश्र के ये अपनी खाल बदलेंगे”, वहीं चंदौसी से उपस्थित वरिष्ठ रचनाकार रमेश अधीर अपनी इन पंक्तियों के साथ चहके – “मैं धरती का वाशिंदा हूँ धरती मुझको भाती है।

आसमान में उड़ने वाली कला मुझे कब आती है। आज हवाओं का भी दामन दानवता ने दाग़ दिया, सुन-सुन कर क़िस्से कुटिलों के धरती धैर्य गँवाती है।” कार्यक्रम के अंतिम सोपान पर वरिष्ठ रचनाकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने अपनी चिर परिचित शैली में व्यंग्य का रंग भरते हुए कहा  – “सुन  रहे यह साल  आदमखोर है। हर तरफ  चीख, दहशत, शोर है। मत कहो वायरस जहरीला बहुत, इंसान ही आजकल कमज़ोर है।”  कवयित्री डॉ. रीता सिंह द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।

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