छत्तीसगढ़

गांव की दादी मां …

नारायणपुर। यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है, ग्राम कोडोली नरिया में 2006 या इससे पहले गांव में कोई भी व्यक्ति या महिला या बच्चे कभी भी स्कूल नहीं गए थे और यहां की स्थानीय भाषा बोली गोंडी है। जब मैं 2006 में स्कूल में कार्यभार ग्रहण किया तो यहां पर किसी प्रकार का कोई भवन नहीं था। 2006 से लेकर 2013 तक सामुदायिक भवन (घोटूल) में ही सभी विद्यार्थियों को अध्ययन कराया जा रहा था लेकिन ग्रामवासियों के सहयोग से 2013 में दो कमरे का स्कूल भवन ग्राम पंचायत की ओर से बनाकर दिया गया जो काफी छोटा सा है और दीवारों पर कई जगह दरारें पड़ी हुई है। ज्ञान ज्योति प्राथमिक शाला कोडोली जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आज आप लोगों को सच्ची घटना पर आधारित गांव की दादी मां के बारे में आपको बता रहा हूं।

गांव की दादी मां के नाम से प्रसिद्ध महिला ग्राम नरिया कोडोली की श्रीमती जुगरी बाई 60 वर्ष की उम्र होने के बाद भी पढ़ाई के प्रति उनकी रुचि देखते ही बनती है। वे परिवार में सबसे बड़ीं हैं। इनके दो पुत्र और दो पुत्रियां हैं और सभी की शादी हो चुकी है। अपने पुत्र के बच्चों (नाती) को स्कूल लेकर आती रहतीं हैं, क्योंकि उनको पढ़ाते हुए को सुनना बहुत अच्छा लगता है। इसी कारण उन्हें जब भी समय मिलता वे अपने नाती को घुमाने स्कूल लेकर आती हैं।

मैंने एक दिन दादी मां से पूछ लिया कि आपको स्कूल आना अच्छा लगता है, इस पर उन्होंने कहा कि ‘अगर मुझे पढ़ने का मौका मिले तो जरूर पढ़ती’ शिक्षक ने प्रसन्न मुद्रा में उनका आत्मीय स्वागत उपस्थित विद्यार्थियों और मेरे द्वारा ताली बजाकर किया गया। उन्हें श्यामपट्ट {स्लेट} पर हिंदी वर्णमाला लिखने के लिए कहा गया तो बिना डरे स्वयं से जाकर हिंदी वर्णमाला को लिखने लगीं तथा मेरे द्वारा उन्हें नाम को किस प्रकार लिखते हैं, लिखकर बताया गया तो उन्होंने दो से तीन बार के अभ्यास के बाद अपना नाम सही ढंग से लिख लिया और काफी प्रसन्न हुई। इस प्रसन्न मुद्रा भाव को सभी बच्चे एवं शिक्षक देखकर आश्चर्यचकित हुए।

श्रीमती जुगरी बाई स्कूल के प्रति समर्पित हैं। उन्हें जब भी समय मिलता है तो स्कूल जरूर आतीं हैं और स्कूल की गतिविधियों के बारे में बातचीत हमेशा करतीं रहतीं हैं। साथ ही स्कूल में अनुपस्थित विद्यार्थियों की जानकारी लेने वे अनुपस्थित विद्यार्थियों के घर में जाकर माता-पिता से संपर्क करतीं हैं और स्थानीय बोली गोंडी में समझाकर विद्यार्थियों को दूसरे दिन खुद से बुलाकर स्कूल लाती हैं। श्रीमती जुगरीबाई स्कूल से संबंधित प्रत्येक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लेतीं हैं।

2006 में ग्राम नरिया कोडोली में कोई बच्चा हिंदी नहीं बोलता था और आज की स्थिति में पूरे गांव वाले हिंदी में बात करते हैं। यह सब गांव की दादी मां के द्वारा ही संभव हो पाया है। क्योंकि वे सभी पालकों और विद्यार्थियों को स्कूल और घर में हिंदी में बात करने के लिए प्रेरित करतीं हैं। गांव की दादी मां स्वयं भी हस्ताक्षर करने के लिए नाम लिखना सीख गईं और दूसरों को भी नाम लिखने के लिए प्रेरित करतीं हैं। स्कूल की अनेक गतिविधियों में स्वयं उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनाने में उनका सहयोग सदैव सराहनीय रहा है। गांव के और स्कूल के सभी बच्चे उन्हें प्यार से गांव की दादी मां कह कर पुकारते हैं।

©देवेंद्र कुमार देवांगन की दिल्ली बुलेटिन के लिए नारायणपुर से विशेष रपट.

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