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कोरोना का कोई धर्म नहीं …

नई दिल्ली {संदीप सोनवलकर} । निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के जमावड़े और उसके बाद कोरोना के फैलाव से जहां एक तरफ इस बीमारी से लड़ने की चुनौती और भी बढ़ गई है। वहीं देश में मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक पर एक नए तरह का वायरस धर्म के नाम पर फैलाया जा रहा है। मीडिया कर्मी दिन रात दुनियाभर के वीडियो खंगालकर साबित करने में जुट गए हैं कि कोरोना का नया धर्म इस्लाम हो गया है। इसमें कोई शक नहीं कि निजामुद्दीन में लगे जमात के जमावड़े ने जो जहालत दिखाई है और कुछ इलाकों में स्वास्थय कर्मियों को जो टारगेट किया गया वो कड़े से कड़े शब्दो में निंदनीय है लेकिन जिस तरह की लहर मीडिया और सोशल मीडिया पर इस्लामोफोबिया के नाम पर फैलाई जा रही है वो भी उतनी ही खतरनाक है।

दरअसल ये वक्त सोच समझकर चलने का है। लाकडाउन, बेरोजगारी और खाने-पीने के सामान की कमी का सबसे ज्यादा असर गरीब पर हुआ है और सब ये जानते हैं कि धर्म की घुट्टी उनको की पिलाई जाती है। तबलीगी जमात की जहालत के बाद ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि कोरोना फैल रहा है तो केवल अल्पसंखयकों के कारण। पहले से ही एनआरसी और सीएए के कारण डर का माहौल था और अब तबलीगी की तलाश के नाम पर हो रही छापेमारी की खबरों ने डर और बढ़ा दिया है। इंदौर में डाक्टरों पर हमले या मुंगेर में पुलिस पर हमले को कोई भी सही नहीं ठहरा सकता है लेकिन ये वक्त सोचने का जरूर है कि इस डर के पीछे की वजह क्या है।

होना तो ये चाहिए था कि केन्द्र और राज्य सरकार की तरफ से भरोसा दिलाया जाना चाहिए कि इस पूरी कवायद का मकसद केवल जांच करना है, किसी को प्रताड़ित करना नहीं लेकिन अफसोस ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। ऊपर से मीडिया और सोशल मीडिया पर अधपकी जानकारियां और वीडियो से जनमत बनाया जा रहा है। ये वक्त अल्पसंखयक समाज के लिए भी उतनी ही चुनौती से भरा है। उस समाज के जितने भी पढ़े-लिखे और समझदार लोग हैं उनको तुरंत आगे आकर तबलीगी जमात के कार्यक्रम और डाक्टरों पर हमले की मजम्मत करनी चाहिए। जरुरत है कि कोरोना जैसी बीमारी को किसी धर्म या जाति में नहीं बांटकर सबको साथ लेकर चलने की है। ये बहुत नाजुक वक्त है।

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