मध्य प्रदेश

चुनाव से पहले जातियों को रिझाने में लगी कांग्रेस और भाजपा, उप्र और बिहार की राह पर बढ़ रही एमपी की सियासत

मप्र की राजनीति में पहली बार जातिवादी ट्रेंड, राज्य के लिए अच्छे संकेत नहीं

भोपाल। मध्य प्रदेश में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव करीब आता जा रहा है, दोनों ही दल पूरी तरह से जनता को अपने पक्ष में रिझाने की हर संभव कोशिश में जुटे हुए हैं। इसी के चलते प्रदेश की सियासत में एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। राजनीतिक दलों ने जाति के आधार पर मतदाताओं को खुश करने के दांव चलना शुरू कर दिया है। राज्य की सियासत में यह पहला मौका है, जब जातिवादी राजनीति के दांव आजमाए जा रहे हैं। यह संकेत दे रहे हैं कि मध्यप्रदेश की सियासत उत्तर प्रदेश और बिहार की राह पर आगे बढऩे लगी है। राज्य के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करना भाजपा और कांग्रेस दोनों का लक्ष्य है। दोनों ही दल यह मानकर चल रहे हैं कि साल के अंत में होने वाले चुनाव आसान नहीं होंगे। लिहाजा इन दलों ने हर वर्ग को लुभाने की योजनाएं बना डाली हैं।

सत्ताधारी बीजेपी की सरकार स्वर्ण कला बोर्ड, रजत कल्याण बोर्ड, तेल घानी बोर्ड, विश्वकर्मा कल्याण बोर्ड, तेजाजी कल्याण बोर्ड और कुशवाहा कल्याण बोर्ड के गठन का ऐलान कर चुकी है। दूसरी ओर, कांग्रेस भी यादव समाज, केवट समाज और अन्य समाजों के साथ पिछड़ा वर्ग के सम्मेलनों का आयोजन कर चुकी है। कुल मिलाकर भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही दल समाजों के सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं तो संबंधित समाजों से जुड़े नेता अपने लिए विधानसभा चुनाव में टिकट देने का दबाव भी बना रहे हैं। इन नेताओं का तर्क यही है कि उनकी जाति के मतदाताओं का जितना प्रतिशत है, उतने टिकट उस जाति के लोगों को दिए जाएं। कुल मिलाकर इस बार के चुनाव से पहले राज्य में उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति की छाया नजर आने लगी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एमपी में अब तक जाति के आधार पर राजनीति की दिशा में न तो भाजपा बढ़ी थी और न ही कांग्रेस। इस बार दोनों ही राजनीतिक दल सत्ता पाने की चाहत में उस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, जो आने वाले समय में राज्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।

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