लेखक की कलम से

नारी वरदान या अभिशाप…

लुटती हो आबरू जहां बोलो किस तरह मैं सो जाऊं

तुम्हीं बताओ क्या अब मैं अपने घर भी ना जाऊं

कभी निर्भया, कभी प्रियंका, मरती रोज यहां बेटियां

क्या मैं सिर्फ खिलौना हूं भूख मिटाने का यहां

मुझे बना के ईश्वर भी अब रोया होगा

क्यों दिया नारी जन्म सोच पछताया होगा

नहीं चाहती तुम मेरी मौत पे अब मोमबत्तियां जलाओ

जो है गुनहगार अब उन्हें ही जिंदा जलाओ

याद रखना तुम अगर यू ही ख़ामोश रह जाओगे

एक दिन अपनी बेटियों का भी यही हाल पाओगे

गया था कोर्ट क्या वहशी मुझे लूटने से पहले

मिटा दो उसे तुम अब तारीख आने के पहले

नारी वरदान या अभिशाप है जरा बताओ तुम

नहीं सहेज सकते तो मत दुनिया में मुझे लाओ तुम

मांगती हूं आज ये वरदान मैं विधाता से

ना हो किसी की बेटी ना लूटी जाऊं आबरू जान से

हे नारी तू अब तो जाग जा

जन्म दिया जिस वहशी को उसकी जान लुटा

तू जन्मदाई है पुरुष की उसे मिटा भी सकती है

मां है नारी है तू अपनी कोख उजाड़ भी सकती है

आज रोया है मेरी मौत पर वो विधाता भी

जिसने बनाया पुरुष के साथ नारी भी

©दीपिका अवस्थी, बांदा, उत्तरप्रदेश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button