लेखक की कलम से
दृष्टि
कविता
देख तो मुझे रहे हो, पर क्या देख रहे हो
रंग-रूप देख रहे हो, उम्र देख रहे हो
या इन सब से परे मेरी रूह देख रहे हो
तुम क्या देख रहे हो …..
मेरी आँखों में नशा देख रहे हो
इज़हार का मजा देख रहे हो
या शब्दों के प्रस्फुटन की
अदा देख रहे हो
तुम क्या देख रहे हो ……
मेरी वफ़ा देख रहे हो
अपना भविष्य देख रहे हो
या ख़ुद के विचारों का
मुझमें परावर्तन देख रहे हो
तुम क्या देख रहे हो …..
या कि कब आऊँगी तुम्हारी बाँहों में
संग चलूँगी राहों में
तज के अपने क्षेत्र को
तुम्हारे बसाए क्षेत्र का क्षेत्रपाल देख रहे हो
या ख़त्म होते अपने वंश का चिराग़ देख रहे हो
तुम क्या देख रहे हो
देख तो मुझे रहे हो, पर क्या देख रहे हो ….