लेखक की कलम से

मैं समुद्र हूं, एक ठहरा हुआ …

 

मैं समुद्र हूं, एक ठहरा हुआ,

एक पत्थर तो, फेंक कर देख,

कितने अरमानों के मोती,

और कितनी सीपियां हैं इसमें,

जरा मेरी गहराई में, झांक कर तो देख,

मैं समुद्र हूं, एक ठहरा हुआ।

 

छू लेगीं, मेरी लहरें तेरे कदम,

जरा मेरे, तट पर आकर तो देख,

कितनी ठंडक है, मेरे तट के रेत में,

पूनम की चांदनी रात में,

नंगे पांव रेत पर, चल कर तो देख,

मैं समुद्र हूं, एक ठहरा हुआ।

 

ना लिख, मेरे किनारे के रेत पर,

अपने नाम के हर्फ,

लहरें बाहर ले जाएंगी,

मिट जाएंगे निशां,

तेरा ही अक्स, नजर आएगा मुझमें,

जरा मेरी गहराई में, झांक कर तो देख,

मैं समुद्र हूं, एक ठहरा हुआ, एक पत्थर ,फेंक कर तो देख,

मैं समुद्र हूं, एक ठहरा हुआ।

 

 

©लक्ष्मी कल्याण डमाना, नई दिल्ली       

Back to top button