लेखक की कलम से
अलविदा मां …
पलास खिलते ही कोयल ने कहा विदाई
बसन्त कैसे सहे ए अन्याय?
जाना एक दिन सबको है
पर ऐसे कितने जाते हैं?
सुर सम्राज्ञी सुरसरि
अन्तस् में झंकृत सुरलहरी।
देवी के संग चल बसी देवी
हृदय में रख गई अमिट छवि।
राजसी मान से विदा राजदुलारी
जन जन के मन में सैलाब तारी।
पवनहिलोर मन्द मन्द डोलते हैं
यूँ जैसे गीतों के बोल बोलते हैं।
त्याग तितीक्षा निर्मोह सेवा प्यार
सबको पुष्प स्वयं को कांटों का हार।
ऐसे जीवन को शीश नवाते सारे
स्वर सुधा में प्लावित दोनों किनारे।
थम गया है सुर टूट गए हैं ताल
अकेला रोये भूलुंठित जयमाल।
युग युग तक अमर रहेगी कहानी
स्वर्णिल सुर अमृतमय वाणी।।
Hindi me anubad- Nilanjan Adhikari
©मनीषा कर बागची