लेखक की कलम से
तुम्हें याद रहा…
तुम्हें याद रहा,
यह क्या कोई कम बात है।
आज कहां कोई याद रखता है
किसी की कही बातों को?
पर तुम्हें याद रहा…
आज के इस युग में,
गूगल के इस दौर में,
कहीं भी कुछ अंजाना सा नहीं,
कहीं भी कुछ अपरिचित सा नहीं,
मेरे द्वारा बहाया गया “विचारावेग”
जो तुम्हें हिला सा गया,
यह क्या कोई कम बात है?
जो तुम्हें याद रहा….
कहीं न कहीं
वैचारिक पक्ष को ही नहीं,
व्यवहारिक रूप में भी भिगो गया तुम्हें,
डूबो गया तुम्हें,
एहसासों से तिरोहित कर गया तुम्हें,
यह कोई कम बात नहीं,
तुम्हें याद रहा,
मेरा कहन……
अल्पना सिंह (कोलकाता), शिक्षिका, कवयित्री