लेखक की कलम से

मकर संक्रांति पर वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच की तमिलनाडु इकाई की गोष्ठी …

राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच की तमिलनाडु इकाई की गोष्ठी 15 जनवरी दिन शनिवार को इकाई नरेश नाज के सानिध्य में वर्चुअली आयोजित हुआ। इसकी अध्यक्षता विजय मोहन सिंह ने की, जो राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष भी हैं। अपने मनमोहक किरदार व मधुर सरस मुस्कान बिखेरती व चांद सी हर दिल को अपनी रचना से शीतलता देने वाली श्रीमती किरण गर्ग, जो राष्ट्रीय महासचिव, राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच भी हैं, मुख्य अतिथि के रूप में पटियाला से पधारीं। सूर्य सा तेज, ऊर्जावान, प्रकाण्ड विद्वान आरजे संतोष, सेलम से, जो प्रोफेसर व लेखक, विचारक, चिंतक, रचनाकार भी हैं, विशिष्ट अतिथि रहे। गोष्ठी के संचालन की बागडोर बंगलोर की प्रसिद्ध कवियित्री श्रीमती स्वीटी सिंघल ‘सखी’ के कुशल हाथों में रही। सरस्वती वंदना तमिलनाडु की वरिष्ठतम कवियित्री श्रीमती डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन ने मधुरगीत से की जिसने सभी के हृदय पर अमिट भाव अंकित किया।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विजय मोहन सिंह ने सभी के स्वास्थ्य के लिए ईश्वर प्रार्थना से की व उपस्थित समस्त कविगण का धन्यवाद भी किया और पटल को और भी बुलंदी तक पहुंचने का मूलमंत्र सभी कविगणों के सहयोग को बताया। अपने विशिष्ट अतिथि उद्बोधन में आर जे संतोष ने सभी का हृदय से धन्यवाद करते हुए पटल को बहुत सारी शुभकामनाएँ दीं कि इसी तरह सब और भी आगे लिखते चलें व प्रतिभा को लेखन से निखारते चलें व पटल के अध्यक्ष का धन्यवाद भी किया। अपने मुख्य अतिथि उद्बोधन में श्रीमती किरण गर्ग ने सभी को पोंगल व मकर संक्रांति की बधाई देते हुए तमिलनाडु इकाई की गोष्ठी की सफलता पर हर्ष जाहिर किया व पटल के अध्यक्ष का धन्यवाद दिया।

इस गोष्ठी में कुल 18 कवियों ने भाग लिया, जिनकी रचनाएं एक से बढ़कर एक थी जो इस प्रकार हैं:-

गोष्ठी की शुरुआत ही विश्व प्रसिद्ध कवियित्री सरला विजय सिंह सरल ने “मन की खिड़की खोल रे मनवा, मन की खिड़की खोल, चारों दिशाएं दीप्तिमान हैं, किरणें रही हैं डोल रे मनवा, मन की खिड़की खोल” से मन के भावों को आनंदित किया। दूसरे नंबर पर सारे विश्व में अपनी रचना की खुशबू बिखेर चुके नंद सारस्वत स्वदेशी ने हिंदी की महिमा का वर्णन कुछ यूं किया, “वतन की आन है हिंदी,वतन का मान है हिंदी, वतन का गान है हिंदी, वतन का ज्ञान है हिंदी।” रजनीकांत झा ने “बहुत हुआ आभासी दर्शन, चलते फिरते यंत्र से करते रहते घूम घूम कर बातें” से सबका दिल जीता। प्रख्यात वरिष्ठ कवियित्री श्रीमती डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन ने “हिंदी हमारे माथे की बिंदी” रखकर सबका दिल जीता व सभी को अपना आशीर्वाद दिया। श्रीमती ऊषा टिबड़ेवाल ने स्वास्थ्य न ठीक होते हुए भी साहित्य से प्रेम का अद्भुत उदाहरण पेश किया, “पूरा शोलह श्रंगार, जब तक न सजती माथे पर बिंदी, कितनी भाषाएं बोले, लिखें, गाएं अधूरे हैं हम हमारी मात्रृभाषा बिन हिंदी।”

डॉ. मिथिलेश सिंह ने “भरोसा है तो रिश्ते हैं, रिश्ते हैं तो खुशहाली है, भरोसा टूटने पर सब कुछ टूट जाता है” से सामाजिक रिश्तों का सार समझाया। संतोष श्रीवास्तव विद्यार्थी ने ” संग संग गंगा नीर नहा लो, तिल का केवल ताड़ न बनता, लड्डू भी बनते प्यारे “रखकर सबका ध्यान खींचा। डॉ. अशोक कुमार द्विवेदी ने सेना दिवस के अवसर पर देशभक्ति रचना “हम सिपाही हैं जांबाज तेरे” से देशप्रेम का भाव जगाया। श्रीमती डॉ. विद्या शर्मा ने “अगर प्रणय के प्रिय न बनो तो,पूजा के पाहन बन जाओ” से सबके दिलों में प्रेमरस घोला जो आज भी कायम है।

श्रीमती अनीता सोनी ने “मकर संक्राति का त्योहार, माघी प्यारा उपहार, भरा पतंग से गगन अपार, उत्तरायण हो गए रविराय” रखा तथा मोहन लाल गंगवार ने अपने नौसेना के जीवन पर लिखी रचना “सामुद्रिक तट की सुरक्षा के लिए सदा जो रहते हैं तैयार, इनके लिए मैं हृदय से करता हूं शत शत बार नमस्कार” सुनाकर सबको देशप्रेम के उमंग से भर दिया। सबसे युवा कवि दिनेश कुमार ने सभी से आशीर्वाद लेकर अपनी रचना “अनसुलझे रिश्ते” शीर्षक से “वो इक दिन मिली थी ऐतबार नहीं था, उसके दिल में मेरे लिए प्यार नहीं था” रखा जिसे सभी ने सराहा व विशेष प्यार दिया।

श्रीमती चंद्रा गंगवार ने “प्रीत प्यार के दिए जलाएं, ऐसा हम दीपक बन जाएं” से मुहब्बत, प्यार अमन का पैगाम दिया। त्रिभुवन जैसवाल ने बहुत खूबसूरत रचना “मानव की दुनिया में मानव, क्यूं मानव सा नजर न आता, मानव के चेहरे में मानव, मानव ही दानव बन जाता” के माध्यम से समाज को आईना दिखाया। ढाई घंटे तक चली अनवरत गोष्ठी को अपने संचालन से नई बुलंदी तक ले जाने वाली श्रीमती स्वीटी सिंघल ‘सखी’ ने खूबसूरत ग़ज़ल “सुनो ये बात है सच्ची, भले कुछ अटपटी सी है, मसालों में नमक सी जिंदगी अपनी घटी सी है” से वाह वाही लूटी। आपके कुशल संचालन की ऐसे ही प्रतिभा दिनोंदिन बढ़ती जाए, बाबू विजय मोहन व किरण गर्ग सहित समस्त कवियों ने आशीष दिये।

विशिष्ट अतिथि आर जे संतोष ने बहुत ही सुंदर रचना “जन्म एक ही बार मिला है, हर दिन वरदान सम,जगत में प्यार भर कर जिया करेंगे हरदम ” रखकर गोष्ठी को हिमालय जैसे शिखर तक पहुँचाया व जीवन का सार भी समझाया। गोष्ठी की मुख्य अतिथि श्रीमती किरण गर्ग ने शहीदों को समर्पित रचना अपनी बहुत ही मार्मिक रचना “कालापानी” रखी जिसकी पंक्तियां कुछ यूं थीं “किस कदर खौफ था कि चढ़ा दिये थे सूली पर, रगों में लहु नहीं फौलाद बहता था जिनकी, आओ काला पानी चलें”। इस रचना को सुनकर सबके रौंगटे खड़े हो गए लेकिन इसके बाद आप ने इक प्यारा माहिया सुनाकर गोष्ठी में चार चांद लगाया व अपनी रचना से सबको मंत्रमुग्ध और भावविभोर कर दिया। गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे विजय मोहन सिंह ने बहुत ही मनमोहक रचना “कैसे आओगी तुम मेरे ख़्वाबों में, आती नहीं नींद तेरे ख्यालों में, गुजरता नहीं कोई लम्हा तेरे बिना,सिमटी सी रहती हो अलसाई यादों में” पढकर सभी में ऊर्जा का संचार किया। आपने आपने आशीर्वचनों में सभी को स्नेह और आशीर्वाद दिये। सभी के स्वास्थ्य लाभ की ईश्वर से कामना भी की।

स्वीटी के संचालन को सभी ने ह्रदय से सराहा। धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती चंद्रा गंगवार ने बहुत मनमोहक अंदाज में किया। सभी ने एक-दूजे से पुनः मिलने का वादा किया।

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