लेखक की कलम से
सच्चा साथी ….
मैं सुख से प्रेम करती रही
और दु:ख मुझे
मैं सुख के जितना करीब जाती
वो मुझसे उतना दूर चला जाता
दु:ख मेरी प्रतीक्षा में
किसी चौराहे पर ठहर जाने के
बजाए
हर पल मेरे साथ रहा
मैं उसे जितना झिड़कती
वह उतना पास आता
उसने मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा
मैंने सुख की राह में उम्र गुजार दी
उसे ना कभी आना था
ना ही आया
दुनिया से विदाई की बेला में
मैंने सिरहाने खड़े दु:ख को
खींचकर सीने से लगा लिया,
दुलारा, प्रेम से निहारा
वह इतने भर से निहाल हुआ, खूब रोया
अंततः किसी सच्चे साथी की तरह
मेरे साथ मर गया ।।
©चित्रा पवार, मेरठ, यूपी